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यूनियन ने अचानक ख़त्म की तमिलनाडु में एमआरएफ़ टायर फ़ैक्ट्री की हड़ताल

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेज़ी के मूल Union abruptly terminates strike at MRF Tyre factory in Tamil Nadu का है, जो 16 अक्तूबर 2025 को प्रकाशित हुआ था।

पेरम्बदूर के एमआरएफ़ प्लांट में 2017 में हड़ताल हुई थी। (लेबर न्यूज़ इंडिया) [Photo by Labour News - India ]

तमिलनाडु के तिरुवोट्टियूर स्थित मद्रास रबर फैक्ट्री (एमआरएफ़) प्लांट में 800 मज़दूरों की अनिश्चितकालीन हड़ताल, 19 दिनों के बाद 30 सितम्बर को एमआरएफ़ कर्मचारी यूनियन (एमईयू) द्वारा अचानक समाप्त करा दी गई।

एमआरएफ़ एक टायर बनाने वाली कंपनी है जिसके 9 मैन्यूफ़ैक्चरिंग प्लांट पूरे भारत में हैं। विभिन्न प्लांटों, ख़ासकर तमिलनाडु के प्लांट में बेहद तानाशाही मैनेजमेंट के ख़िलाफ़ एमआरएफ़ के वर्कर हड़ताल करते रहे हैं। बीते 25 सालों से कंपनी यूनियन को मान्यता देने, तनख्वाह बढ़ाने और काम के हालात में सुधार के लिए संघर्ष कर रहे वर्करों को लगातार प्रताड़ित कर रही है।

तिरुवोट्टियूर प्लांट के वर्कर बहुत मामूली मांग कर रहे थे- गुलामों के स्तर वाली मज़दूरी पर अप्रेंटिस वर्करों को भर्ती करना बंद करो, इसकी जगह परमानेंट वर्करों को भर्ती करो और मज़दूरों की ओर से सालाना हेल्थ बीमा प्रीमियम का अग्रिम भुगतान करने की कंपनी की लंबे समय से चली आ रही सुविधा को जारी रखो। दरअसल, वर्करों को छह महीने में अपने वेतन से कटौती करके कंपनी को भुगतान करना ज़रूरी होता है।

कट्टर व्यवसाय परस्त डीएमके (द्रविड़ मुन्नेत्र कज़गम) पार्टी की राज्य सरकार के समर्थन से कंपनी प्रबंधन, एमईयू नेताओं को घुटने टेकने पर मजबूर करने में सफल हो गया। एमईयू का संबंध स्टालिनवादी सीटू से है और अपने सारे व्यावहारिक कामों के लिए उसी के नौकरशाहों से निर्देश लेती है। एक अकेले प्लांट में मज़दूरों के हड़ताल को अलग थलग करने का सीटू का इतिहास बहुत लंबा है, जिसका तमिलनाडु में अच्छा ख़ासा जनाधार है। इसके अलावा सीटू, वर्करों को मज़दूर विरोधी डीएमके सरकार और अदालतों के सामने खोखली अपीलों तक सीमित करती रही है।

असल में सीटू की यह सड़ी गड़ी रणनीति उसी स्टालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीएम) से आती है जिससे वो संबद्ध है। सीपीएम का डीएमके पार्टी की सरकार से बहुत गहरा नाता है और वह डीएमके को मज़दूरों और ग़रीबों के कल्याण के लिए चिंतित एक प्रगतिशील क्षेत्रीय पार्टी के रूप में बढ़ावा देती है। डीएमके जो बीते कई दशकों से राज्य में बारी बारी से सत्ता में आती रही है, उसने राज्य को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक मुनाफ़ा कमाने वाले प्रदेश में बदल डाला है। नतीजतन, राज्य वैश्विक निवेश की पसंदीदा जगह बन गई है।

यह हड़ताल 11 सितम्बर को शुरू हुई थी जब मज़दूरों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की नेशनल अप्रेंटिस प्रमोशन स्कीम (एनएपीएस) के तहत एमआरएफ़ प्रबंधन द्वारा अप्रेंटिस मज़दूरों को भर्ती करने की जानबूझकर की गई प्रक्रिया का विरोध किया था। इसके बाद मैनेजमेंट ने हड़ताली मज़दूरों के लिए तालाबंदी की घोषणा कर दी और ठेका और टेंपरेरी मज़दूरों से उत्पादन जारी रखा।

एनएपीएस को 'युवाओं के लिए रोज़गार' पैदा करने के लिए डिज़ाइन किए गए कार्यक्रम के रूप में प्रचारित किया जाता है। इसके तहत नौजवान मज़दूरों को 5,000 रुपये से लेकर 9,000 रुपये प्रति माह तक का वेतन मिलता है। इसे दास-मज़दूरी ही कहा जा सकता है। स्टाइपेंड या वजीफ़े की राशि मज़दूरों की शैक्षिक योग्यता पर निर्भर करती है, जो 5वीं से 9वीं कक्षा पास करने से लेकर कॉलेज की डिग्री तक हो सकती है। एनएपीएस के तहत, भारत सरकार कंपनी को मासिक वजीफ़े का 25 प्रतिशत तक भुगतान करती है, जिसकी अधिकतम सीमा 1,500 रुपये (17 अमेरिकी डॉलर) प्रति माह है।

दिलचस्प बात है कि एनएपीएस अप्रेंटिस को उतनी भी तनख्वाह नहीं दी जाती है जितनी एमआरएफ़ के ट्रेनी वर्करों को दी जाती है। कथित तौर पर हाईस्कूल और टेक्निकल स्कूल से डिग्री पाने वाले एमआरएफ़ ट्रेनी को 16,500 रुपये मिलता है और कॉलेज ग्रेजुएट को 18,000 रुपये प्रतिमाह मिलता है।

जैसे-जैसे एनएपीएस भर्ती को लेकर मज़दूरों का विरोध बढ़ता गया, बदले की भावना वाले कंपनी प्रबंधन ने घोषणा की कि वे अब मज़दूरों के सालाना हेल्थ बीमा प्रीमियम का अग्रिम भुगतान नहीं करेंगे। एमआरएफ़ के लिए इसपर कुल बीमा खर्च एक करोड़ रुपये (लगभग 115,000 अमेरिकी डॉलर) है, जो उसके मुनाफ़े के मुकाबले कुछ भी नहीं है। 31 मार्च, 2025 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में उसे 18.2 अरब रुपये (208 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का मुनाफ़ा हुआ था वो भी टैक्स देने के बाद। कंपनी के पास 185 अरब रुपये (2.1 अरब डॉलर) का नकदी भंडार था।

किसी भी स्थिति में हेल्थ बीमा कवरेज का खर्च वर्करों को ही वहन करना पड़ता है। जैसा पहले बता चुके हैं कि प्रति वर्कर 12,000 रुपये का कुल सालाना प्रीमियम का खर्च वर्करों की तनख्वाहों से छह महीने की किश्तों में वसूला जाता है।

वर्करों को समझ आ गया है कि कंपनी हेल्थ बीमा प्रीमियम को कंपनी द्वारा अग्रिम भुगतान किए जाने को पलटने के फ़ैसले के पीछे, कर्मचारियों को एनएपीएस प्रोग्राम स्वीकार करने के लिए उन्हें ब्लैकमेल करना ही मूल कारण है। और इसका मकसद है कि उनकी मज़दूरी को और कम करना। इससे मज़दूरों का बग़ावती और जुझारू मूड और बढ़ गया, जिससे एमईयू को सीटू के साथ मिलकर अनिश्चितकालीन हड़ताल का आह्वान करने पर मजबूर होना पड़ा।

शुरुआत में एक स्वतंत्र यूनियन के रूप में गठित होने के बावजूद, एमईयू ने परमानेंट वर्करों को टेंपरेरी वर्करों के साथ एकजुट करने के लिए न्यूनतम कदम भी नहीं उठाए, जिनकी संख्या आमतौर पर परमानेंट वर्करों से ज़्यादा होती है। इससे हड़ताल बहुत कमज़ोर हो गई क्योंकि प्रबंधन ने हड़ताल को 'अवैध' घोषित करने के बाद, उत्पादन लाइनों को चालू रखने के लिए बेहद कम वेतन पाने वाले ठेका और टेंपरेरी वर्करों का इस्तेमाल किया।

इसके अलावा, एमआरएफ़ के मज़दूर अलग-अलग यूनियनों में बँटे हुए हैं, जिससे पूरी कंपनी में हड़ताल करने के उनके प्रयासों को झटका लग रहा है। तिरुवोट्टियूर प्लांट से लगभग 95 किलोमीटर पश्चिम में स्थित एमआरएफ़ अराकोणम प्लांट में मज़दूरों ने 2009 में अपने एमआरएफ़ यूनाइटेड वर्कर्स यूनियन (एमयूडब्ल्यूयू) को औपचारिक मान्यता दिलाने के लिए 125 दिनों का कड़ा संघर्ष किया था। इसके बावजूद, अराकोणम प्लांट के प्रबंधन ने एमयूडब्ल्यूयू के विरोध में एक कठपुतली यूनियन बना ली।

एमआरएफ़ के तिरुवोट्टियूर प्लांट में हड़ताल होने के बाद, तमिलनाडु में हड़ताल के दौरान मैनेजमेंट के फ़ैसलों को लागू करवाने में प्रमुख क़ानूनी प्रवर्तक बन गए मद्रास हाई कोर्ट ने फ़ैक्ट्री गेट के पास प्रदर्शन न करने का आदेश दिया। स्टालिनवादी सीटू की तत्कालीन नौकरशाही ने तब एमईयू के नेता को हड़ताल का स्थान बदलकर, पास के विमको नगर में स्थित सीटू कार्यालय करने का निर्देश दिया।

हड़ताली वर्करों को संबोधित करते हुए सीटू के प्रदेश अध्यक्ष सुंदरराजन ने डीएमके की अगुवाई वाली राज्य सरकार से तुरंत हस्तक्षेप करने की अपील की और जोड़ा कि 'श्रम मंत्री और अधिकारियों को मैनेजमेंट से तुरंत वार्ता की मेज पर बुलाना चाहिए।' इसके बाद बयानबाज़ी के तौर पर उन्होंने पूछा, 'जब मैनेजमेंट ने वर्करों के लिए तालाबंदी कर दी, तो फिर इतनी चुप्पी क्यों है?'

और वाक़ई में डीएमके सरकार ने इस पर कार्रवाई की! 30 सितम्बर को एमईयू नेताओं को एडिशनल लेबर कमिश्नर ने प्लांट के प्रोडक्शन और एचआर मैनेजरों से मुलाक़ात के लिए बुलाया लेकिन कंपनी के पक्ष में 'समझौता' थोपने के लिए।

कमिश्नर ने आदेश दिया कि 'वर्करों और मैनेजमेंट दोनों को 9 सितम्बर की यथास्थिति क़ायम रखनी चाहिए। वर्करों को शांतिपूर्वक काम करना चाहिए और हड़ताल जैसी कार्रवाईयों में शामिल नहीं होना चाहिए। मैनेजमेंट को किसी भी तरह की बदले की भावना से कार्रवाई में शामिल नहीं होना चाहिए। अंततः, दोनों पक्षों को समाधान तलाशने के लिए शांति पूर्वक काम करने चाहिए।'

अरिया [Photo: WSWS]

एमआरएफ़ में 32 साल से काम कर रहे हड़ताली स्थायी कर्मचारी, अरिया ने वर्ल्ड सोशलिस्ट वेबसाइट को बताया, 'मुझे 60,000 रुपये (686 अमेरिकी डॉलर) का सकल वेतन मिलता है और कटौतियों के बाद, मुझे 40,000 रुपये (457 अमेरिकी डॉलर) मासिक मिलते हैं। मेरी पत्नी घर और हमारी दोनों बेटियों की देखभाल करती है। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा पूरी कर ली है और अब आईटी कंपनियों में काम कर रही हैं।'

अरिया एमईयू के 'काम पर वापसी' आदेश से बेहद नाराज़ थे। उन्होंने कहा, 'यह शून्य, शून्य और शून्य के अलावा कुछ नहीं है। यूनियन नेताओं ने यथास्थिति बनाए रखने के लिए जो सहमति जताई है, उससे अधिकांश मज़दूर खुश नहीं हैं। मज़दूरों के उग्र तेवरों से यूनियन नेता हिल गए और यूनियन नेताओं और ज्वाइंट लेबर कमिश्नर (जेसीएल) द्वारा उन पर थोपी गई विश्वासघाती शर्तों के आगे घुटने टेक दिए।'

अरिया ने बताया कि एमआरएफ़ तिरुवोट्टियूर प्लांट में वर्तमान में 820 मज़दूर काम करते हैं , जिनमें 61 अप्रेंटिस हैं और अन्य 300-400 ठेका मज़दूर हैं।

मज़दूरों में यह आम धारणा है कि जब स्थायी मज़दूर रिटायर होंगे, तो उनकी जगह एनएपीएस अप्रेंटिस को लगा दिया जाएगा। अरिया ने कहा, 'हम इसका विरोध करते हैं, क्योंकि एनएपीएस मज़दूरों को ठीक से ट्रेनिंग भी नहीं मिली होती है। उत्पादन में लगे रहने पर उन्हें गंभीर चोट लग सकती है।'

तिरुवोट्टियूर और अन्य एमआरएफ़ प्लांटों के मज़दूरों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वे अपने संघर्ष को कैसे आगे बढ़ाएँ। यह तभी संभव है जब मज़दूर, संघर्ष के नए साधन, खुद के द्वारा नियंत्रित रैंक-एंड-फाइल कमेटियां बनाएं, ताकि सभी एमआरएफ़ प्लांटों के मज़दूरों को एकजुट किया जा सके। ये कमेटियां एमआरएफ़ मज़दूरों को तमिलनाडु के उन हज़ारों औद्योगिक मज़दूरों से जुड़ने का ज़रिया प्रदान करेंगी, जो प्रबंधन, डीएमके सरकार, अदालतों और यूनियन की नौकरशाही में उनके साथ मिले हुए लोगों के लगातार हमलों का सामना कर रहे हैं।

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