यह अनुवाद अंग्रेज़ी के मूल लेख 41 people crushed to death at Tamil Nadu political rally का है, जो तीन अक्टूबर 2025 को प्रकाशित हुआ था।
27 सितंबर की शाम को दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के करूर शहर में एक राजनीतिक रैली के दौरान कुचलकर और दम घुटने की भयावह घटना में 41 लोग मारे गए, जिनमें 10 बच्चे और 16 महिलाएं थीं, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हो गए।
यह रैली तमिझागा वेट्टरी काझगम (टीवीके या तमिल विजय एसोसिएशन) की ओर से आयोजित की गई थी, जिसे पिछले साल तमिल फ़िल्म स्टार विजय ने बनाया था, जो काफ़ी लोकप्रिय हैं, ख़ासकर नौजवानों के बीच।
तमिलनाडु में अगले साल अप्रैल में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और करूर रैली, दरअसल एक्टर विजय के मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा का ही एक हिस्सा थी।
51 साल के विजय को उनके फै़न अक्सर थालापथी यानी कमांडर कहते हैं। वह तमिल सिनेमा के सबसे लोकप्रिय सितारों में से एक हैं। क़रीब तीन दशक से फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए उन्होंने 65 फ़िल्मों में काम किया है। वो अक्सर इन फ़िल्मों में ऐसे क़िरदार निभाते रहे हैं जो ग़रीबों को बचाता है और भ्रष्ट अमीर वर्ग से मुकाबला है। उनकी फ़िल्में दक्षिण भारत में सबसे अधिक कमाई करने वाली फ़िल्मों में शुमार करती हैं।
27 सितंबर की रैली के लिए करूर-इरोड रोड के सबसे घने बाज़ार वाले इलाक़े वेलूसामीपुरम को चुना गया था। जहां मुश्किल से 1,000 वर्गफुट की जगह थी जोकि 25,000 लोगों के लिए बेहद कम ज़गह थी, जहां विजय की रैली के लिए 27 सितंबर को लोग पहुंचने वाले थे।
अपने पसंदीदा मॉडल को देखने के लिए लोग सुबह दस बजे से ही वहां इकट्ठा होना शुरू हो गए थे, लेकिन विजय और उनका काफ़िला वहां सात घंटे लेट, शाम को पहुंचा। जब अभिनेता से नेता बने विजय ने अपनी टूर बस पर चढ़कर भीड़ को संबोधित करना शुरू किया, तब शाम के सात बज चुके थे।
और तबतक ये साफ़ हो गया था कि वहां के हालात काबू से बाहर हो गए हैं।
भारी संख्या में जुटी भीड़ में बहुत से लोग ऐसे थे जो भारी गर्मी में घंटों तक दमघोटू भीड़ में इंतज़ार कर रहे थे, जबकि वहां पर्याप्त खाना, पानी और बुनियादी सुविधाएं नदारद थीं। हालांकि शाम छह बजे रैली स्थल के पास एक एंबुलेंस भेजी गई ताकि वहां जो लोग डीहाइड्रेनशन और थकान के मारे बेहोश हो गए थे, उन्हें निकाला जा सके।
भीड़ में कुचलने और दमघोंटू माहौल पैदा होने के कारणों को लेकर बहुत सारे और परस्पर विरोधी दावे सामने आ रहे हैं, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि यह एक भयानक हादसा था जिसे घटने से रोका जा सकता था।
तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने इस घटना की जांच के लिए एक महिला जांच आयोग का गठन किया है। अपनी ओर से टीवीके ने बीजेपी की केंद्र सरकार नियंत्रित सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इनवेस्टिगेशन यानी सीबीआई से जांच कराए जाने की मांग की है।
कुछ समाचार स्रोतों का दावा है कि जब भीड़ जुटी थी तो एक्टर की एक झलक पाने के लिए समर्थक एक पेड़ पर चढ़ गए और उसकी एक शाखा टूट गई, जिसने हालात को और बिगाड़ दिया।
वीडियो फ़ुटेज में दिखता है कि भीड़ आगे और पीछे झूल रही है और कई लोग अपने दोनों हाथों से स्मार्टफ़ोन उठाए हुए एक्टर विजय की एक झलक को कैमरे में क़ैद करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि उस समय वह अपनी टूर बस पर खड़े होकर संबोधित कर रहे हैं।
विजय के पांच मिनट के भाषण में लोगों की चीख पुकार सुनाई देती है और उसी समय भीड़ को चीरती हुई दो एंबुलेंस बीच में पहुंचती है। जब एंबुलेंस भीड़ में घुस रही थी, रास्ता साफ़ करने के लिए पुलिस ने लोगों को हटाने के लिए लाठी चार्ज किया।
विजय अपनी आंखों के सामने ये सब घटित होता देख रहे थे और उन्होंने ये भी देखा कि एंबुलेंस वहां पहुंची है लेकिन उन्होंने बिना रुके अपना भाषण जारी रखा। लेकिन दमघोटू भीड़ में यहां वहां से चीख पुकार की आवाज़ सुनाई दे रही थी। भीड़ में मौजूद कई लोगों ने आस पास गिरते लोगों पर ध्यान देने और पानी देने के लिए एक्टर से मिन्नतें भी कीं।
इस पर विजय ने अपनी बस से कुछ पानी की बोतलें भीड़ में फेंकी भी, लेकिन इसने उस अफ़रा तफ़री को और बढ़ा दिया। इस भारी अफ़रा तफ़री के बावजूद, ऐसा लगा कि विजय की मूल चिंता अपना भाषण पूरा करना थी। उन्होंने अपने माइक्रोफ़ोन को थोड़ा ठीक है और फिर बोलना शुरू किया, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो।
इसके एक मिनट बाद ही, फिर से भीड़ के बीच मदद की गुहार की आवाज़ें उठने लगीं। एंबुलेंस के सायरन बज रहे थे और एक के बाद कई लोग गिर रहे थे। लेकिन एक्टर पर जैसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था और वह अपनी आंखों के सामने बिगड़ते हालात को लेकर उदासीन थे।
आखिरकार वो एंबुलेंस को जगह देने के लिए भीड़ से आग्रह करते हैं, लेकिन यह असंभव था क्योंकि वहां क्षमता से अधिक भीड़ जमा थी। फिर भी विजय अपना भाषण जारी रखते हैं, बजाय इसके कि वो भीड़ को वहां से जाने और जगह को खाली करने को कहें।
अपना भाषण समाप्त करने के बाद विजय त्रिची एयरपोर्ट के लिए निकल गए, जहां वो अपने प्राईवेट जेट से चेन्नई चले गए। वह उन दर्जनों लोगों के प्रति पूरी तरह से उदासीन थे जो भीड़ में कुचलने वाली घटना के दौरान मारे गए थे या गंभीर रूप से घायल हो गए थे, जो एक घंटे के दौरान उनकी आंखों के सामने घटित हुई थी।
तमिलनाडु की डीएमके सरकार ने रैली आयोजकों पर सुरक्षा दिशानिर्देशों के घोर उल्लंघन का आरोप लगाया है। पुलिस ने विजय के करीबी सहयोगी एन. आनंद और पार्टी के संयुक्त महासचिव निर्मल शेखर समेत टीवीके के कई वरिष्ठ नेताओं पर पब्लिक सेफ़्टी क़ानूनों के उल्लंघन के साथ-साथ ग़ैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया है। 30 सितंबर को करूर पश्चिम ज़िले के टीवीके सचिव मथियाझगन पर भी इसी तरह के आरोप लगाए गए थे।
इस बीच, टीवीके ने डीएमके पर दोष मढ़ने की कोशिश की है। शुरुआत में, उन्होंने शिकायत की कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त पुलिसकर्मी नहीं थे। पार्टी समर्थकों ने बाद में डीएमके के एक स्थानीय नेता सेंथिल बालाजी पर आरोप लगाया कि जब विजय बालाजी के भ्रष्टाचार पर व्यंग्य करने वाला एक गाना गा रहे थे, सेंथिल बालाजी ने पुलिस को भीड़ पर हमला करने का निर्देश दिया जिससे भीड़ में अफ़रा तफ़री मच गई। सेंथिल बालाजी पर विजय ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है।
इन दावों पर इस मूल मुद्दे को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया कि सभा स्थल बहुत छोटा था, घंटों से विजय का इंतज़ार कर रहे लोगों को कोई मदद नहीं पहुंचाई गई और हालात बेकाबू होने के बावजूद रैली को जारी रखने का फ़ैसला किया गया।
जहां तक पुलिस का सवाल है, संकेत यही हैं कि उन्होंने वैसा ही व्यवहार किया जैसा वे आमतौर पर भारत में प्रचंड क्रूरता करते हैं, और वह भी तब जब मामला शांतिपूर्ण रैली के बीच से एंबुलेंस के लिए रास्ता साफ करने का था।
दो दिनों की आपराधिक ख़ामोशी के बाद, विजय ने पांच मिनट लंबा एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने खेद जताया और डीएमके मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से कहा कि उनके पार्टी के कार्यकर्ताओं को ज़िम्मेदार ठहराने की बजाय उन्हें गिरफ़्तार करें। इस वीडियों में वह पूछते हैं, 'यह करूर में ही क्यों हुआ?' और अपनी पहले की रैलियों का हवाला देते हैं और आशंका जताते हैं कि 27 सितंबर का हादसा ज़रूर डीएमकी की साज़िश रही होगी।
पुलिस के अनुसार, टीवीके ने शुरू में उस छोटी सी जगह में 10,000 लोगों के लिए परमिशन मांगी थी, जो वहां आने वाले थे। इस पूरे उपमहाद्वीप में पूंजीवादी राजनेताओं का यह आम चलन है कि वह छोटी सी जगह में सामूहिक रैलियां आयोजित करते हैं ताकि ये जताया जा सके कि उनकी रैली में खचाखच भीड़ उमड़ी थी। इसके अलावा ये नेता अक्सर अपने प्रशंसकों को घंटों इंतज़ार कराते हैं और जब पहुंचते हैं तो तालियों की गड़गड़ाट से उनका स्वागत होता है, ताकि वो दिखा सकें कि उनकी कितनी ताक़त है और प्रशंसकों के बीच उनकी कितनी लोकप्रियता है. कि उनकी एक झलक पाने के लिए लोग घंटों इंतज़ार करते हैं।
पहले के आयोजनों और करूर में भी, विजय भारी भीड़ जुटाने में सफल रहे। हालांकि उनका सुपर स्टारडम की छवि की बेशक इसमें एक बड़ी भूमिका थी, लेकिन साथ ही भारी संख्या में युवाओं, बेरोज़गार पढ़े लिखे युवाओं की भीड़ इकट्ठा होना तमिलनाडु में गहराते सामाजिक संकट यानी बेरोज़ारी, बढ़ती महंगाई और ख़राब ठेका मज़दूरी- का भी ये संकेत है।
लगभग छह दशकों से, तमिलनाडु की राज्य सरकार पर डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) और एआईएडीएमके (अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) का बारी-बारी से शासन रहा है। दोनों ही तमिल (द्रविड़) जातीय-राष्ट्रवाद में डूबे हुए हैं; दशकों से भारतीय और विदेशी पूंजी की ओर से निवेशक परस्त नीतियों का पालन करते रहे हैं; अमेरिकी साम्राज्यवाद के साथ भारतीय पूंजीपति वर्ग की 'वैश्विक रणनीतिक साझेदारी' का समर्थन करते रहे हैं; और कई बार कांग्रेस पार्टी, जो हाल तक शासक वर्ग की राष्ट्रीय सरकार की पसंदीदा पार्टी रही है, या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदू वर्चस्ववादी भाजपा के साथ गठबंधन किया है।
तमिलनाडु के बेरोज़गार नौजवान और ठेका मज़दूर, जिनमें अधिकांश कर्ज से दबे ग्रामीण परिवारों से आते हैं, उन्होंने पारंपरिक सत्ताधारी पार्टियों द्वारा अपनी उम्मीदों और अरमानों को छला जाता देखा है। इन पार्टियों के नाम, लगातार भ्रष्टाचार के पर्यायवाची बनते गए हैं।
अगर इनमें से बहुत से लोग अभिनेता से कथित जननेता बने विजय की ओर आकर्षित हुए तो यह हताशा का ही परिणाम है और यह उम्मीद है कि स्क्रीन पर भ्रष्ट अमीरों के ख़िलाफ़ ग़रीबों को बचाने के लिए लड़ने वाले उनकी हीरो की छवि, आम लोगों की वास्तविक ज़िंदगी को भी बदल सकती है।
लेकिन इस राजनीतिक कन्फ़्यूज़न और हताशा के लिए मूल रूप से स्टालिनवादी पार्टियां- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) या सीपीएम और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीआई) और उनसे संबद्ध ट्रेड यूनियनें ज़िम्मेदार हैं, जो दिखाती तो हैं कि वो लेफ़्ट हैं, जबकि दूसरी तरफ़ वर्ग संघर्ष को व्यवस्थित रूप से दबाती हैं।
हाल के दशकों में तमिलनाडु में मज़दूर वर्ग के आकार और सामाजिक शक्ति में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है, जिसने इसे पूरे भारत में हड़तालों और सामाजिक विरोधों की संख्या के मामले में अग्रणी पंक्ति में ला खड़ा किया है। फिर भी, पूरे भारत की तरह, तमिलनाडु में भी, स्टालिनवादियों ने मज़दूरों को अलग-थलग सामूहिक सौदेबाज़ी के संघर्षों तक सीमित रखा है, और उन्हें कॉर्पोरेट अड़ियलपन के सामने अदालतों और सरकार से निरर्थक अपील करने के लिए उकसाया है, जबकि राजनीतिक रूप से उन्हें पूंजीवादी दलों का पिछलग्गू बना दिया।
राष्ट्रीय स्तर पर, इसका मतलब बार-बार दक्षिणपंथी भाजपा से लड़ने के नाम पर बड़े व्यवसाय परस्त कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करना रहा है। तमिलनाडु में, सीपीएम और सीपीआई डीएमके सरकार के करीबी सहयोगी हैं, जबकि वह हड़तालें तुड़वाती है और निजीकरण को आगे बढ़ाती है। इसके अलावा डीएमके खुद के 'सामाजिक न्याय' की पार्टी होने का बढ़ चढ़ कर दावा करती है, जो ग़ैर-ब्राह्मण आंदोलन में अपनी जड़ों पर आधारित है, जिसने 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में स्थानीय अभिजात वर्ग को चुनौती दी थी, जबकि ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विरोध किया था और बाद में द्रविड़ राष्ट्रवाद की राजनीतिक रूप से प्रतिगामी अवधारणा को विकसित किया था।
टीवीके खुद को भ्रष्टाचार-विरोधी, 'तमिल-समर्थक' विकल्प के रूप में पेश करती है। विजय, सामाजिक समर्थन बढ़ाने और पूंजीवादी विकास के ज़रिए गरीबी और आर्थिक असुरक्षा दूर करने के अपने झूठे वादों को पूरा न कर पाने के लिए डीएमके की निंदा करते हैं, साथ ही भाजपा और अन्नाद्रमुक, जिनका उन्होंने 2011 के विधानसभा चुनाव में समर्थन किया था, की भी आलोचना करते हैं।
डीएमके और एआईडीएमके की तरह, विजय भी गैर-ब्राह्मण/द्रविड़ परंपरा और उसके आरंभिक एवं प्रमुख प्रतिपादक पेरियार का हवाला देकर खुद को 'प्रगतिशील' रंग देने की कोशिश करते हैं, और उन्हीं की तरह तमिल अंधराष्ट्रवाद को बढ़ावा देते हैं और दक्षिणपंथी पूंजीवादी राजनीति करते हैं। इसमें उत्तर भारतीयों और अन्य प्रवासियों की क़ीमत पर तमिल नौकरियों में विशेष कोटा की मांग करना; और श्रीलंका के कब्जे वाले कच्चातिवु द्वीप पर भारत/तमिलनाडु की संप्रभुता और कावेरी नदी के पानी के बड़े हिस्से पर तमिल राष्ट्रवादी दावों का समर्थन करना शामिल है।
करूर त्रासदी ने टीवीके के घोर कपटपूर्ण चरित्र और काल्पनिक नायक विजय का इस्तेमाल करके खुद को तमिलनाडु के मज़दूरों और मेहनतकशों का हिमायती बताने के उसके प्रयासों को उजागर किया है।
