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उत्तरी श्रीलंका में पवन टर्बाइनों को लेकर हुए विशाल प्रदर्शन पर पुलिसिया हमला

यह अनुवाद अंग्रेज़ी के मूल Police attack mass protest over wind-turbines in northern Sri Lanka का है जो तीन अक्टूबर को प्रकाशित हुआ था।

मन्नार में पवन ऊर्जा संयंत्र के ख़िलाफ़ प्रदर्शन पर हुए पुलिसिया हमले के ख़िलाफ़ आयोजित रैली। (फ़ेसबुक/वसंता मुदालिगे) [Photo by Facebook/Wasantha Mudalige]

29 सितम्बर को श्रीलंका के युद्ध से जर्जर हो चुके उत्तरी इलाक़े के मन्नार ज़िले में हज़ारों वर्कर, मछुआरे, नौजवान और महिलाओं ने व्यापक हड़ताल में हिस्सा लिया था। दरअसल एक दिन पहले ही 26 सितम्बर को पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट को लेकर रात में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन हुआ था और पुलिस ने उनपर क्रूरता से हमला किया, जिसके विरोध में सोमवार को ये हड़ताल, मन्नार सिटिज़ेंस कमेटी ने आयोजित की थी।

मन्नार सिटिज़ेंस कमेटी के नेताओं ने राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके को भेजने के लिए एक पत्र ज़िले के प्रशासनिक प्रमुख को सौंपा। इसमें पुलिस हमले की जांच और लंबे समय से की जा रही सरकार की पवन ऊर्जा स्कीम को बंद करने की मांग की गई थी। यहां के निवासी इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इससे पर्यावरण को भारी नुकसान होने और उनके जीने के हालत पर बुरा असर पड़ेगा।

अगस्त में, राष्ट्रपति दिसानायके ने मन्नार सिटिजंस कमेटी के नेताओं से मुलाक़ात की थी और उन्हें आश्वासन दिया था कि जब तक इस प्रोजेक्ट से जुड़ी पर्यावरणीय चिंताओं का समाधान नहीं हो जाता, इस प्रोजेक्ट को रोक दिया जाएगा।

हालांकि, 26 सितम्बर की शाम को लोगों को पता चला कि असल में पवन टर्बाइनों को निर्माण वाली जगह पर ले जाया जा रहा है। रात क़रीब 10 बजे सैकड़ों प्रदर्शनकारी शांतिपूर्वक इकट्ठा हो गए थे और मन्नार कस्बे की मुख्य सड़क पर धरना शुरू कर दिया और यातायात को रोक दिया।

प्रदर्शनकारियों ने नारेबाज़ी की और पुलिस से बहस किया और दिसानायके पर प्रोजेक्ट को रोकने की मांग से धोखा देने के आरोप लगाए। उस समय वहां सैकड़ों हथियारबंद पुलिसकर्मी मौजूद थे और इनमें कुख्यात स्पेशल टास्क फ़ोर्स के सदस्य भी थे। उन्होंने प्रदर्शनकारियों पर लाठी डंडों से बहुत बुरी तरह हमला बोल दिया। महिलाओं समेत कई लोग घायल हुए और अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

अगले दिन पुलिस ने मन्नार मजिस्ट्रेट कोर्ट में नौ प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया जिनमें तीन ऐसे लोग थे जो पुलिसिया हमले में घायल हुए थे और इसमें मन्नार सिटिज़ेंस कमेटी के अध्यक्ष और धर्म प्रचारक मार्कस अडिगालार का भी नाम था। इस मामले की सुनवाई 17 नवंबर को होनी है।

पुलिस द्वारा किया गया यह ताज़ा हमला मन्नार निवासियों द्वारा लगभग दो महीने से किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों के बाद हुआ है, जिन्हें तरह तरह के पुलिसिया उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है।

मन्नार में पवन ऊर्जा संयंत्र के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों से भिड़ती पुलिस। (फ़ेसबुक/रूबाम मीडिया ग्रुप्स) [Photo by Facebook/Roobam Media Groups]

मन्नार एक 130 वर्ग किलोमीटर का द्वीप है जो मुख्य भूमि से एक पुल के माध्यम से जुड़ा हुआ है। यहां रहने वाले 70,000 निवासियों में बहुसंख्यक तमिल हैं और मुस्लिम समुदाय की भी काफ़ी संख्या है। लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल इलम के ख़िलाफ़ 1983 से 2009 के बीच कोलंबो की साम्प्रदायिक लड़ाई में यहां के लोगों को बर्बर सैन्य दमन का सामना करना पड़ा था। मन्नार कस्बे में एक सामूहिक कब्र का खुलासा हुआ, जिसमें 346 इंसानों के कंकाल मिले थे, जिनमें 29 बच्चों के कंकाल थे।

केंद्रीय पर्यावरण प्राधिकरण (सीईए) से पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) की मंज़ूरी मिलने के बाद सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) ने 2019 में वर्ल्ड बैंक की मदद से पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट के पहले चरण की शुरुआत की थी।

हालांकि पवन चक्की के निर्माण से मछलियां कम हो गई हैं, समंदर के पानी में रुकावट की वजह से बाढ़ के हालात हो गए हैं और प्रवासी पक्षियों के आने का क्रम गड़बड़ा गया है। अपनी आजीविका के लिए मछली पकड़ने पर निर्भर अधिकांश निवासियों ने मछली उत्पादन में भारी गिरावट की बात कही है। जब प्रोजेक्ट के दूसरे चरण का प्रस्ताव दिया गया, सीईए ने इसके असर के आकलन की रिपोर्ट पेश की तो इसमें इन मुद्दों के बारे में ख़ासकर चिंताएं व्यक्त की गई थीं।

इससे पहले की विक्रमसिंघे सरकार ने इस प्रोजेक्ट को बनाने के लिए भारतीय अरबपति निवेशक गौतम अडानी की ग्रीन एनर्जी कंपनी के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इस समझौते पर तभी विवाद पैदा हो गया था क्योंकि इसके पारिस्थितकीय टिकाउपन से जुड़ी सीईए की मंज़ूरी लिए बिना ही इस पर हस्ताक्षर किए गए थे।

पिछले साल हुए चुनाव प्रचार के दौरान दिसानायके और उनकी जनता विमुक्ति पेरामुना/नेशनल पीपुल्स पॉवर (जेवीपी/एनपीपी) ने पारिस्थितिकीय ख़तरे का हवाला देते हुए इस प्रोजेक्ट का मुखर विरोध किया था और कहा था कि किसी विदेशी कंपनी को यह प्रोजेक्ट दिया जाना, श्रीलंका की 'ऊर्जा संप्रभुता' को कम करना है। इस राष्ट्रवादी बयानबाज़ी में जेवीपी की व्यापक भारत-विरोधी अंधराष्ट्रवादिता झलक भी शामिल थी, जिसका मक़सद मन्नार क्षेत्र में व्यापक विरोध का फ़ायदा उठाकर वोट हासिल करना था।

साल 2024 में सत्ता में आने के बाद, हालांकि दिसानायके सरकार, अडानी के साथ हुए समझौते पर अपने रुख़ से पलट गई और उसने बिजली के दामों को लेकर मोलभाव शुरू कर दिया। बीती फ़रवरी में आख़िरकार अदानी की कंपनी इस सौदे से हट गई।

मई में दिसानायके सरकार ने श्रीलंका के एक बड़े पूंजीपति के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किया, जिसका नाम है हेलेज़ ग्रुप और इसकी सब्सिडियरी कंपनी हेलेज़ फ़ेंटोंस को इसके निर्माण का काम सौंपा गया। इसके तुरंत बाद निवासियों ने फिर से धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया, क्योंकि मूल चिंता का समाधान अभी भी नहीं हो पाया था।

13 अगस्त को प्रदर्शनकारियों के नेता दिसानायके से मिले और उनसे वादा किया गया कि जबतक एक स्पेशल कमेटी की रिपोर्ट पर विचार नहीं किया जाता, तबतक के लिए प्रोजेक्ट रोक दिया जाएगा।

हालांकि रिपोर्ट की समीक्षा के बाद, राष्ट्रपति के सचिव डॉ. एनएस कुमानायके ने कथित तौर पर 22 सितम्बर को ऊर्जा मंत्रालय को एक चिट्ठी लिख कर प्रोजेक्ट फिर से शुरू करने की मंज़ूरी दे दी। इससे गुस्साए निवासियों ने पवन टर्बाइनों को इलाक़े में लाने के रास्ते बंद कर दिए, क्योंकि सरकार के इस फ़ैसले की उन्हें जानकारी नहीं दी गई थी।

मन्नार के मछुआरे प्रोजेक्ट के पहले चरण से ही मछली पकड़ने में भारी गिरावट की शिकायत कर रहे हैं। जहां उन्हें पहले भरपूर मछलियां मिलती थीं, वहां अब उनकी संख्या कम हो गई है, ख़ासकर समुद्र के उन तटीय इलाकों में जहां टर्बाइन लगाई जा रही है।

निवासियों ने बताया कि मानसून के मौसम में, निर्माण स्थल से कुछ किलोमीटर दूर पेसलाई इलाक़े में भी भयंकर बाढ़ आई थी। पवन टर्बाइनों की नींव ने प्राकृतिक जल प्रवाह को बंद कर दिया था। रिपोर्टों से पता चलता है कि परियोजना के निर्माण के समय, जल प्रवाह को आसान बनाने के लिए पुलिया ठीक से नहीं बनाई गई थीं।

इसके अलावा उस इलाक़े में खनिज संपन्न रेत के खनन को कोलंबो द्वारा लगातार बढ़ावा दिये जाने ने आग में घी का काम किया है। ऑस्ट्रेलियाई कंपनी टाइटेनियम सैंड्स लिमिटेड (टीएसएल) के पास साल 2022 से ही सर्वे लाइसेंस है।

वैज्ञानिक अध्ययन दिखाते हैं कि मन्नार द्वीप पर बहुत क़ीमती खनिज मौजूद हैं, जैसे, इल्मेनाइट, रुटाइल, ज़िर्कोन और गार्नेट। कोलंबो के संडे टाइम्स के अनुसार, भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण एवं खनन ब्यूरो (जीएसएमबी) का अनुमान है कि इस क्षेत्र में 53 मिलियन मीट्रिक टन खनिज मौजूद हैं।

टीएसएल वर्तमान में खनन लाइसेंस हासिल करने के लिए जीएसएमबी के साथ बातचीत कर रही है, पर्यावरणीय प्रभाव आकलन लंबित है, जिसे सामुदायिक विरोध के कारण अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। कंपनी के निदेशक जेसन फ़ेरिस ने टाइम्स को बताया कि टीएसएल ने अब तक 2 अरब रुपये (6.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर) का निवेश किया है और लाइसेंस मिलने के बाद 24 अरब रुपये निवेश करने की योजना है। बढ़ते विरोध को देखते हुए, युवाओं ने 6 अगस्त को मन्नार में 'काली मिट्टी की रक्षा करो' के नारे के साथ विरोध प्रदर्शन किया।

29 सितम्बर को हुए व्यापक प्रदर्शन के बाद, सत्तारूढ़ जेवीपी के नेतृत्व वाली एनपीपी से संबद्ध एक नागरिक अधिकार समूह 'जनोदनय मूवमेंट' ने गुरुवार को एक बयान जारी कर पुलिस हमले की “कड़ी” निंदा की। बयान में कहा गया कि “लोगों ने एनपीपी सरकार पर अपना भरोसा और विश्वास जताया है,” लेकिन पुलिस हिंसा से भरोसा उठ जाएगा।

साफ़ तौर पर राजनीतिक लापापोती में, जनोदनय आंदोलन ने दावा किया कि पुलिसिया हमला 'गंभीर प्रश्न उठाता है कि क्या पुलिस के भीतर अभी भी मौजूद षड्यंत्रकारी ताक़तें जानबूझकर (सरकार के ख़िलाफ़) विभाजन और दुश्मनी पैदा करने के लिए काम कर रही हैं।'

हालांकि, दिसानायके सरकार ने देश भर में अपने प्रशासन के प्रति बढ़ते जन विरोध को दबाने के प्रयास के तहत यह ताज़ा हमला किया। यह दावा करना ग़लत है कि पुलिस ने स्वतंत्र रूप से कार्रवाई की। हेलीज़ निवेश को मंज़ूरी देने के बाद, सरकार ने पुलिस को अपने कॉर्पोरेट सौदों के विरोध को कुचलने के लिए बल प्रयोग करने का आदेश दिया होगा।

24 अगस्त को, सरकार ने डाक कर्मचारियों की एक हफ़्ते से चल रही देशव्यापी हड़ताल को ख़त्म करने के लिए पुलिस और सेना को लगाया था और 21 सितंबर को निजीकरण और नौकरियों में कटौती का विरोध कर रहे सीईबी कर्मचारियों को धमकाने के लिए आवश्यक सेवा अधिनियम लागू किया। ये सिर्फ़ दो उदाहरण हैं कि कैसे सरकार ने हाल के महीनों में कर्मचारियों और प्रदर्शनकारियों का हिंसक दमन किया है।

जनोदनय आंदोलन के प्रवक्ताओं ने मन्नार निवासियों को सावधान किया है कि वे 'सत्ता-लोलुप ताकतों' से सावधान रहें जो उनकी नाराज़गी का फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं। यह एक निंदनीय भटकाव है। सच तो यह है कि जेवीपी/एनपीपी ने ही सत्ता हासिल करने के लिए इन नाराज़गियों का फायदा उठाया और सत्ता में आने के बाद उन्हें धोखा दिया।

तमिल आरासू काच्ची, तमिल नेशनल पीपुल्स फ़्रंट और तमिल नेशनल पार्टी समेत तमिल राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने पुलिसिया हमले की निंदा करने वाले रस्मी बयान जारी किए और 'सरकारी आतंकवाद' के ख़िलाफ़ चेतावनी जारी की।

ये दावे खोखले हैं। ये पार्टियां और बाकी का संसदीय विपक्ष, सरकार के आईएमएफ़ समर्थित खर्च कटौती की नीतियों का समर्थन करते हैं और दावा करते हैं कि 'आर्थिक रिकवरी' के लिए ये ज़रूरी है। मन्नार के लोगों पर बर्बर पुलिसिया हमला और मज़दूरों एवं ग़रीबों का व्यापक दमन, सरकार के तानाशाही शासन की ओर जाने का एक और सबूत है।

सरकारी दमन और इसके बड़े व्यवसाय वाले कार्यक्रमों के ख़िलाफ़ पर्यावरण, जीने के हालात और बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों को बचाने की लड़ाई के लिए, पूंजीवाद विरोधी एवं सामाजवादी कार्यक्रम पर आधारित, सभी जनजातीय विभाजनों से ऊपर उठकर, मज़दूर वर्ग के एकीकृत आंदोलन की ज़रूरत है।

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