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सिंधु जल संधि के भारत के निलंबन से, पाकिस्तान के साथ युद्ध छिड़ने का ख़तरा

अंग्रेजी के India’s suspension of Indus Waters Treaty escalates threat of all-out war with Pakistan लेख का यह हिंदी अनुवाद 9 मई 2025 को प्रकाशित हुआ थाI

शुक्रवार, 9 मई, 2025 को भारतीय नियंत्रण वाले कश्मीर के उरी में गिंगल गांव में पाकिस्तान की ओर से रात भर की गई गोलाबारी के बाद एक कश्मीरी ग्रामीण अपने क्षतिग्रस्त घर के बाहर खड़ा है. (एपी फोटो/दार यासीन) [AP Photo/Dar Yasin]

पाकिस्तान और पाकिस्तान-नियंत्रित कश्मीर में 6-7 मई की रात को नई दिल्ली द्वारा किए गए अवैध हवाई हमलों के बाद दक्षिण एशिया की प्रतिद्वंद्वी परमाणु हथियार संपन्न पूंजीवादी शक्तियों भारत और पाकिस्तान के बीच खुले जंग का ख़तरा बढ़ता जा रहा है।

तब से हर रात दोनों देशों की विवादित सीमा पर तोपों और मोर्टार से गोलीबारी होती रही है। दोनों प्रतिक्रियावादी सांप्रदायिक शासनों ने एक दूसरे पर भारतीय और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को अलग करने वाली नियंत्रण रेखा के आर पार हमले करने का आरोप लगाया है।

यद्यपि पश्चिमी मीडिया में इस पर बहुत कम टिप्पणी की गई है, लेकिन तनाव बढ़ने का एक प्रमुख कारण भारत सरकार का सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) में अपनी भागीदारी को निलंबित करने का भड़काऊ फैसला है।

23 अप्रैल को ही नई दिल्ली ने निलंबन का एलान कर दिया, भारत प्रशासित कश्मीर पर आतंकी हमले के 24 घंटे के अंदर ही, जिसके लिए उसने तुरंत ही इस्लाबाद को ज़िम्मेदार ठहराया था।

पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी संसाधन को काटने की धमकी देते हुए नई दिल्ली ने एक ऐसे क्षेत्र में तनाव कम करने के सभी रास्ते बंद कर दिए हैं जो पहले से ही दशकों से साम्राज्यवादी हस्तक्षेप और नई दिल्ली और इस्लामाबाद द्वारा सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिए जाने से जूझ रहा है।

जैसा कि अनुमान था, पाकिस्तान के नेताओं ने अपनी युद्धोन्मादी धमकियों के साथ इसका जवाब दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने संधि के निलंबन को 'जंग का एलान' कहा, जबकि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो-जरदारी ने 25 अप्रैल की एक रैली में कहा, 'सिंधु हमारी है और हमारी ही रहेगी - या तो हमारा पानी इसमें बहेगा या उनका खून।'

अगर निलंबन जल्द रद्द नहीं किया गया तो इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और लोगों पर विनाशकारी परिणाम होने का ख़तरा है, क्योंकि सिंधु नदी के जल प्रवाह में किसी भी तरह की बाधा या रुकावट का खामियाजा देश के करोड़ों ग़रीब श्रमिकों और मेहनतकशों को भुगतना पड़ेगा। पाकिस्तान की अधिकांश कृषि और देश के बिजली उत्पादन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सिंधु नदी के पानी पर निर्भर है।

मंगलवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'अब भारत का पानी भारत के लाभ के लिए बहेगा, भारत के लाभ के लिए इसे संरक्षित किया जाएगा और इसका उपयोग भारत की प्रगति के लिए किया जाएगा।' यह बात तब कही गई जब भारतीय लड़ाकू विमान अंधेरे की आड़ में पाकिस्तान के भीतर सीमा पार हमले करने की तैयारी कर रहे थे। मोदी ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया जब उन्होंने घोषणा की कि 'भारत का पानी' 'अब बाहर नहीं बहेगा', लेकिन उनका लक्ष्य स्पष्ट था।

1960 में लागू हुए सिंधु जल संधि को भारत द्वारा निलंबित करना अभूतपूर्व है। पिछले 65 वर्षों में पाकिस्तान के साथ दो घोषित जंग, कई अघोषित जंग और अनगिनत सीमा झड़पें लड़ने के बावजूद, नई दिल्ली ने कभी भी संधि को निलंबित नहीं किया।

फिलहाल, इस्लामाबाद कथित तौर पर आईडब्ल्यूटी के निलंबन को स्थायी मध्यस्थता न्यायालय या हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है, इस आधार पर कि नई दिल्ली ने संधियों के क़ानून के मामले में 1969 के वियना कन्वेंशन का उल्लंघन किया है। यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के समक्ष इस मुद्दे को उठाने पर भी विचार कर रहा है।

भारत का यह क़दम किसी आवेगपूर्ण जवाबी कार्रवाई से बहुत दूर थाी। नई दिल्ली ने कम से कम 2016 के बाद से ही संधि से हटने की धमकी देता रहा है।

पाकिस्तान में पानी की कमी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना, भारत की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली हिंदू वर्चस्ववादी सरकार द्वारा इस्लामाबाद के साथ नई दिल्ली के संबंधों में “नियमों को बदलने” के एक ठोस प्रयास का हिस्सा है और यह सब भारत को क्षेत्रीय वर्चस्व स्थापित करने के मक़सद से किया जा रहा है।

ऐसा करके भारतीय पूंजीपति वर्ग द्विपक्षीय संधियों और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के स्थापित मानदंडों का उल्लंघन करने के अपने “अधिकार” का दावा करना चाहता है। हालाँकि अमेरिका के साथ अपनी “वैश्विक रणनीतिक साझेदारी” के बाहर इस तरह की आक्रामक कार्रवाई की कल्पना करना मुश्किल है। अमेरिका ने न तो पाकिस्तान या पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर में
ठिकानों पर भारत के हवाई हमलों की निंदा की और न ही आईडब्ल्यूटी को छोड़ने के नई दिल्ली के फैसले की आलोचना की है।

वॉशिंगटन ने पहले 2016 और 2019 में पाकिस्तान पर सीमा पार “सर्जिकल स्ट्राइक” का समर्थन करके नई दिल्ली को प्रोत्साहित किया था। लंबे समय से चल रहे इस अनुमान के बाद कि हमला आसन्न है, मंगलवार को जब भारतीय हवाई हमले हुए, तो ट्रंपऔर उनके प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों ने केवल सबसे सामान्य टिप्पणी जारी की, जिसमें उन्होंने उम्मीद जताई कि संघर्ष “हल” हो जाएगा।

डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन प्रशासन के तहत दो दशकों से अधिक समय से, वॉशिंगटन ने भारत को चीन का काउंटर करने के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है, साथ ही नई दिल्ली के साथ साझेदारी में, हिंद महासागर पर अमेरिकी दबदबे को सुनिश्चित किया है। हिंद महासागर के समुद्री मार्ग चीन के संसाधनों तक पहुंच और दुनिया के साथ व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं।

चीन के ख़िलाफ़ अपने सैन्य-रणनीतिक हमले में भारत का इस्तेमाल करने के अपने अभियान के तहत, शीत युद्ध के ज़माने के अपने पूर्व सहयोगी पाकिस्तान के साथ अमेरिकी साम्राज्यवाद ने अपने रणनीतिक संबंधों को नाटकीय रूप से कम कर दिया है, जिससे क्षेत्र में शक्ति संतुलन भारत के पक्ष में हो गया है। जवाब में, पाकिस्तान ने चीन के साथ अपनी “सदाबहार” रणनीतिक साझेदारी बढ़ा दी है जिससे वॉशिंगटन और नई दिल्ली और भी नाराज़ हो गए हैं।

पाकिस्तानी अंग्रेजी दैनिक डॉन में एक स्तंभ में खुर्रम हुसैन की टिप्पणी में इस्लामाबाद के लिए निराशाजनक भू-राजनीतिक संभावनाओं को बताया गया है, 'पाकिस्तान भारत को 2019 के अपने क़दमों को दुहराने से रोकने में सफल नहीं हुआ है, जिसके माध्यम से उसने जम्मू और कश्मीर के कब्जे वाले क्षेत्र को अपने संघ में शामिल कर लिया था। अब उसे भारत को आईडब्ल्यूटी के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं पर लौटाने की कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।'

सिंधु नदी बेसिन का नक्शा जिसमें सहायक नदियों को लेबल किया गया है। पीले क्षेत्र वॉटरशेड के गैर-योगदानकारी हिस्से हैं (जैसे कि थार रेगिस्तान)। (फोटो: कीनन पेपर / CC BY-SA 4.0) [Photo by Keenan Pepper / CC BY-SA 4.0]

1947 में उपमहाद्वीप के सांप्रदायिक विभाजन हुआ जिसने मुस्लिम पाकिस्तान और मुख्य रूप से हिंदू भारत के रूप में इस क्षेत्र को बांट दिया था। इसके बाद दोनों देशों के बीच विश्व बैंक ने आईडब्ल्यूटी की मध्यस्थता की, जिसका उद्देश्य इसके पानी के बंटवारे को लेकर संघर्ष को रोकना था। इस समझौते ने सिंधु प्रणाली के लगभग 80 प्रतिशत जल को पाकिस्तान को आवंटित किया, जिससे उसे चिनाब और झेलम की सहायक नदियों और सिंधु के मुख्य हिस्से पर नियंत्रण मिला। भारत ने सिंधु की पूर्वी सहायक नदियों रावी, ब्यास और सतलुज नदियों पर अधिकार बनाए रखा।

भारत को पश्चिमी नदियों के सीमित, गैर-उपभोर उपयोग की भी अनुमति दी गई थी, मुख्य रूप से रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजनाओं के लिए, जिनमें महत्वपूर्ण भंडारण या पानी को मोड़ना शामिल नहीं था। हालाँकि, यह पश्चिमी नदियों पर किसी भी नियोजित परियोजना के बारे में विस्तृत जानकारी साझा करने के लिए बाध्य था और अगर लगता है कि कोई परियोजना उसकी जल आपूर्ति को ख़तरा पहुँचाएगी तो ऐसी स्थिति में पाकिस्तान को आपत्ति उठाने का अधिकार था।

जब भारत ने घोषणा की कि वह आईडब्ल्यूटी में अपनी भागीदारी को निलंबित कर रहा है तो यह व्यापक रूप से माना गया कि भारत के पास प्रमुख बुनियादी ढांचे की कमी पाकिस्तान की जल आपूर्ति में कोई रुकावट नहीं डाल पाएगी। हालाँकि यह धारणा कम से कम आंशिक रूप से ग़लत साबित हुई है। रॉयटर्स ने अनाम भारतीय अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट किया कि भारत अब 'बैराज/बांधों से पानी छोड़ने या बाढ़ के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी और डेटा साझा करना बंद कर सकता है,' और 'लीन सीज़न के दौरान न्यूनतम मात्रा में पानी छोड़ने के लिए भी बाध्य नहीं होगा।' अन्य लोगों ने पुष्टि की कि भारत अपनी कृषि आवश्यकताओं के लिए 'कुछ ही महीनों में' पानी को मोड़ सकता है।

पांच मई को रॉयटर्स ने बताया कि भारत ने पाकिस्तान को आवंटित नदियों पर स्थित कश्मीर में कई जलविद्युत परियोजनाओं में से दो में जलाशय की क्षमता बढ़ाने के लिए काम शुरू कर दिया है। यह प्रयास 'जलाशय फ्लशिंग' से शुरू हुआ जोकि एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तलछट समेत पूरे पानी को नीचे की ओर छोड़ दिया जाता है, जिससे संभावित रूप से अचानक बाढ़ आ सकती है। इसके बाद जलाशयों को फिर से भरने जाने पर पानी की गति कम हो जाती है। रॉयटर्स के अनुसार, पहले इस तरह की कार्रवाईयां संधि की से बंधी हुई थीं।

रॉयटर्स की 6 मई रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मोदी सरकार ने आईडब्ल्यूटी को निलंबित करने के बाद कश्मीर क्षेत्र में चार निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं की शुरुआत की तारीख को महीनों आगे बढ़ा दिया है। सभी चार परियोजनाएं चेनाब पर बनी हैं और रॉयटर्स के अनुसार, इनके निर्माण का पाकिस्तान की ओर से विरोध किया गया था। जैसे-जैसे भारत आईडब्ल्यूटी समझौते को बाधित करने के लिए तेजी से आगे बढ़ रहा है, नई दिल्ली ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह पाकिस्तान को उसकी सिंधु जल जीवन रेखा से वंचित करने के लिए दृढ़ संकल्प है।

अनुमान है कि सिंधु बेसिन में कुल 30 करोड़ आबादी रहती है, जिनमें से अधिकांश पाकिस्तान में हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार, पाकिस्तान की 90 प्रतिशत आबादी सिंधु नदी पर निर्भर है। इसका सबसे अधिक आबादी वाला प्रांत पंजाब पूरी तरह से सिंधु के जल निकासी क्षेत्र में स्थित है जैसा कि खैबर पख्तूनख्वा भी है, जबकि सिंध और पूर्वी बलूचिस्तान का अधिकांश हिस्सा भी बेसिन में आता है। सिंधु पर निर्भरता इतनी अधिक है कि पाकिस्तान की 80 प्रतिशत खेती योग्य भूमि इसके पानी पर निर्भर है जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 25 प्रतिशत है।

सिंधु नदी प्रणाली पर दबाव पाकिस्तान की आबादी में वृद्धि से और भी स्पष्ट होता है- सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर होने से कुछ साल पहले यानी 1951 में यहां की आबादी 3.4 करोड़ थी, जोकि आज 24 करोड़ से अधिक हो गई है। पाकिस्तान के जनसंख्या जनगणना संगठन के अनुसार, प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1951 में 5,260 क्यूबिक मीटर से घटकर 1981 में 2,129 क्यूबिक मीटर, 1991 में 1,611 क्यूबिक मीटर और 2016 में 908 क्यूबिक मीटर रह गई।

2020 में, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने अनुमान लगाया था कि पाकिस्तान में लगभग 20.7 करोड़ लोगों को पानी की “पूर्ण कमी” का सामना करना पड़ेगा, 2025 तक प्रति व्यक्ति 500 ​​क्यूबिक मीटर से भी कम पानी उपलब्ध होगा, जिससे पाकिस्तान प्रभावी रूप से “जल-संकटग्रस्त” से “जल-कमी” वाले देश में बदल जाएगा। जलवायु परिवर्तन से स्थिति और भी ख़राब हो गई है। हिमालय में तेजी से ग्लेशियर पिघलने से निकट भविष्य में विनाशकारी बाढ़ आने के साथ ही सिंधु नदी में गर्मियों में पानी की आपूर्ति भी कम हो जाएगी।

सिंधु नदी के पानी पर निर्भर पाकिस्तान की आबादी पर इसका असर सिर्फ़ कृषि क्षेत्र में काम करने वाले अनुमानित 43.5 प्रतिशत श्रमबल तक ही सीमित नहीं है। संकटग्रस्त देश में खाद्य सुरक्षा को संकट में डालने में पानी की कमी का अहम योगदान है। विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार, '82 प्रतिशत आबादी पौष्टिक भोजन का खर्च नहीं उठा सकती।'

भारत और पाकिस्तान के 1.7 बिलियन लोगों के लिए एक व्यापक युद्ध के जो सामाजिक परिणाम होंगे उसके प्रति दोनों प्रतिक्रियावादी बुर्जुआ शासन पूरी तरह से उदासीन हैं, साम्राज्यवादी ताक़तों की तो बात ही छोड़िए। अक्टूबर 2024 में जारी यूएनडीपी के ताज़ा वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार, भारत और पाकिस्तान दुनिया भर में दो ऐसे देश हैं जिनकी सबसे बड़ी आबादी (क्रमशः 23.4 करोड़ और 9.3 करोड़) तीव्र बहुआयामी गरीबी में जी रही है। इसका मतलब है कि उनके पास अक्सर पर्याप्त आवास, स्वच्छता, पोषण, खाना पकाने का ईंधन, बिजली और स्कूल जाने का अवसर नहीं होता है।

नई दिल्ली द्वारा सिंधु जल संधि को निरस्त करना एक ऐसा कदम है जिससे पीछे हटना मुश्किल है, खासकर इसलिए क्योंकि भाजपा सरकार कट्टर दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी ताकतों पर निर्भर है, जिन्हें उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “मजबूत” रुख़ के इर्द-गिर्द लामबंद किया है, ख़ासकर मुस्लिम पाकिस्तान के ख़िलाफ़। भारत के जल संसाधन मंत्री चंद्रकांत रघुनाथ पाटिल ने एक्स पर खुशी से घोषणा की, “हम सुनिश्चित करेंगे कि सिंधु नदी का एक भी बूंद पानी पाकिस्तान तक न पहुंचे।”

भले ही मौजूदा झड़पें पूर्ण पैमाने पर युद्ध को भड़काने से कम हों, लेकिन भारत द्वारा पाकिस्तान को सिंधु जल प्रवाह को बाधित करने से दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष में वृद्धि होगी और करोड़ों मज़दूरों और ग्रामीण गरीबों के जीवन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। भारत द्वारा अमेरिका को समर्थन दिए जाने वाले सैन्य निर्माण और अपनी खुद की बढ़ती पारंपरिक सैन्य कमजोरियों के जवाब में, पाकिस्तान ने बार-बार अपने परमाणु हथियारों को तैनात करने की धमकी दी है। इस सप्ताह पाकिस्तान पर भारत के शुरुआती हमले के कुछ घंटों बाद बोलते हुए, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ ने चेतावनी दी कि अगर भारत “क्षेत्र पर एक व्यापक युद्ध थोपता है … तो किसी भी समय परमाणु जंग छिड़ सकती है।”

सर्वव्यापी युद्ध को रोकने और उपमहाद्वीप के सांप्रदायिक विभाजन से उत्पन्न भयावह सामाजिक परिस्थितियों को समाप्त करने का एकमात्र तरीका पूरे क्षेत्र में मजदूर वर्ग की एकजुटता है, जो सत्ताधारी अभिजात वर्ग द्वारा जानबूझकर पैदा किए गए सभी धोखाधड़ी वाले विभाजनों को खत्म कर देता है। इसके लिए समाजवादी और अंतर्राष्ट्रीयवादी कार्यक्रम के लिए संघर्ष की ज़रूरत है।

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