यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी Stalinist CITU imposes new sell-out agreement on Samsung India workers, 5 जून 2025 को प्रकाशित हुआ थाI
स्टालिनवादी नेतृत्व वाली सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) ने ऊपर से या मनमाने आदेश के तहत सैमसंग इंडिया के तमिलनाडु इलेक्ट्रिक अप्लायंस प्लांट के मज़दूरों पर एक और समझौता थोप दिया है।
इस समझौते को डीएमके नीत तमिलनाडु राज्य सरकार के दबाव में किया गया, जोकि ग़रीबी के स्तर की मज़दूरी और काम के क्रूर हालात को चुनौती देने वाले सैमसंग वर्करों का पूरे ज़ोर से विरोध किया क्योंकि उसे डर था कि उनका जुझारूपन का उदाहरण निवेशकों को डरा देगा.
सीटू स्टालिनवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीएम से संबद्ध है, जो खुद डीएमके की क़रीबी सहयोगी है।
डीएमके के श्रम मंत्री सीवी गनेशन की मौजूदगी में 19 मई को हस्ताक्षर किए गए समझौते में प्रत्यक्ष रूप से वर्करों की सभी मांगों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। इसमें काम के लंबे घंटे और काम के रफ़्तार के दबाव से कोई राहत नहीं दी गई है। प्रबंधन द्वारा बदले की कार्रवाई से पीड़ित 25 जुझारू वर्कर निलंबित रहेंगे और उनपर आगे भी अनुशासनात्मक कार्रवाई की तलवार लटकती रहेगी।
लगातार अपने वादों से पीछे हटने वाले सैमसंग मैनेजमेंट ने अगले तीन सालों में परमानेंट वर्करों की 18,000 रुपये वेतन वृद्धि की है, जिसके तहत 2025-26 में सालाना 9000 रुपये और 2026-27 और 2027-28 में सालाना 4,500-4,500 रुपये की वेतन वृद्धि होगी। इसके अलावा प्लांट में काम करने के वर्षों के आधार पर वर्करों को प्रति माह 1,000 से 4,000 रुपये की अतिरिक्त वृद्धि दी जाएगी। हालांकि जिन वर्करों की सर्विस तीन साल से कम है उन्हें अतिरिक्त बढ़ोत्तरी नहीं मिलेगी।
यह समझौता सैमसंग के वर्करों को बुरी तरह से जकड़ लेता है। सीटू ने सैमसंग इंडिया वर्कर्स यूनियन (एसआईडब्ल्यूयू) के सदस्यों को निर्देश दिया है कि अगर उन्हें कोई शिकायत है तो वे केवल 'कानूनी प्रक्रियाओं' का पालन करें, जिसका मतलब है कि वे केवल सीटू के भ्रष्ट नौकरशाहों से ही शिकायत कर सकते हैं। कर्मचारियों को सीधे तौर पर धरना-प्रदर्शन और हड़ताल जैसी कार्रवाई करने से मना किया गया है। कर्मचारी नेताओं की बजाय, कंपनी के अधिकारियों की तरह काम करते हुए, सीटू के पदाधिकारियों ने दावा किया है कि राज्य के श्रम कानूनों के तहत कोई भी नौकरी संबंधी कार्रवाई अवैध होगी, अनिवार्य रूप से उन्हें बताया जा रहा है कि अगर वे कंपनी के उकसावे का जवाब देते हैं तो उन्हें यूनियन निकाल देगी।
दिलचस्प बात है कि इस समझौते के बारे में वर्करों से सलाह तक नहीं ली गई थी, इस पर उनकी ओर से सीटू तमिलनाडु स्टेट प्रेसीडेंट ए. सुंदरराजन और सीटू स्टेट सेक्रेटरी ई. मुथुकुमार ने हस्ताक्षर किए थे।
न ही उन्हें इस पर वोट करने दिया जा रहा है, जबकि वे दो बार सप्ताह भर की हड़ताल कर चुके हैं - पहली बार पिछले सितंबर-अक्टूबर में और दूसरी बार फ़रवरी-मार्च में, और प्रबंधन द्वारा उत्पीड़न के एक क्रूर, राज्य सरकार समर्थित अभियान को भी झेल चुके हैं।
एसआईडब्ल्यूयू पर अपना नियंत्रण स्थापित करने वाले राज्य के सीटू नेता, वेतन समझौते के बारे में रैंक एंड फ़ाइल कमेटियों को ठीक से सूचना देने में भी असफल रहे, जबकि इस यूनियन को वर्करों ने खुद की पहलकदमी से जून-जुलाई 2024 में गठित किया था।
समझौते से जुड़ी जानकारियों को वर्करों में पहुंचाने की बजाय, मुथुकुमार ने इसके तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर, सीपीएम के स्टेट यूनिट के एक्स अकाउंट पर पोस्ट कर दिया।
पिछले महीने सीटू और साउथ कोरियाई बहुराष्ट्रीय कंपनी के प्रबंधन के बीच हुआ समझौता पूरी तरह वैसा ही मनमाना तरीक़ा है, जैसे स्टालिनवादी ट्रेड यूनियन फ़ेडरेशन के शीर्ष अधिकारी लगभग एक साल से चल रहे संघर्ष के दौरान अख़्तियार करते रहे हैं।
उन्होंने प्लांट में ज़बरदस्ती यह समझौता थोपा क्योंकि 1800 परमानेंट वर्करों में से 500 की एक महीने तक हड़ताल चली थी और इस हड़ताल को उन्होंने अचानक बंद करा दिया। पांच फ़रवरी को शुरू हुई यह हड़ताल, प्रबंधन द्वारा एसआईडब्ल्यूयू के कई वर्करों-नेताओं को निलंबित किए जाने के बाद अचानक भड़क उठी थी। प्रबंधन द्वारा लगातार उत्पीड़न और धमकियों और प्लांट के परमानेंट और कांट्रैक्ट वर्करों को एकजुट करने की लड़ाई के लिए सीटू के विरोध के कारण, कई यूनियन समर्थकों ने सैमसंग के ख़िलाफ़ पांच महीनों में दूसरी बार हुई हड़ताल के दौरान भी काम करना जारी रखा।
हड़ताल वापस ले ली गई, क्योंकि श्रीपेरंबदूर-कांचीपुरम औद्योगिक क्षेत्र में सैमसंग हड़तालियों के समर्थन में एक दिवसीय हड़ताल के लिए वर्करों के बीच समर्थन बढ़ रहा था। श्रीपेरंबदूर और कांचीपुरम तमिलनाडु की राजधानी और भारत के पांचवें सबसे बड़े शहर चेन्नई के बाहरी इलाके में स्थित हैं।
सीपीएम के अंग्रेजी भाषा के साप्ताहिक, 'पीपुल्स डेमोक्रेसी' में प्रकाशित एक लेख में सैमसंग के तमिलनाडु प्लांट में काम करने की ख़राब हालात पर रोशनी डाली गई है। इसमें कहा गया है कि सीटू द्वारा प्रस्तावित समझौता काम के हालात में सुधार को लेकर बिल्कुल भी कारगर नहीं होगा।
इसमें कहा गया है, 'रिपोर्टों से पता चलता है कि वर्करों के पास एक प्रोडक्ट को फ़िनिश करने के लिए टर्नओवर टाइम 10 से 25 सेकेंड होता है, और ऐसा अक्सर चार से पांच घंटे तक लगातार करना पड़ता है। असेंबली लाइन पर कुछ काम तो ऐसे हैं जिन्हें महज चार सेकेंड में पूरा करना पड़ता है। हालांकि आधिकारिक ब्रेक 10 मिनट का होता है, लेकिन वर्करों को असल में कुल 8 मिनट मिल पाते हैं, क्योंकि उन्हें एक मिनट पहले ही अपने काम की जगह लौटना होता है और ब्रेक शुरू होने के एक मिनट बाद ही वह अपनी जगह छोड़ पाते हैं।' (यहां जोर दिया गया है)
रिपोर्टों के अनुसार, इस महीने से प्लांट में काम के घंटों को 11.5 से 12 घंटे कर दिया गया है। (इनमें 11.5 घंटे वैतनिक हैं जबकि 30 मिनट अवैतनिक है।)
दक्षिणपंथी तमिल राष्ट्रवादी डीएमके सरकार का समर्थन पाकर आत्मविश्वास से भरपूर सैमसंग कंपनी ने वर्कर विरोधी उकसावे की कार्रवाई को बढ़ा दिया है। वर्करों को री-ट्रेनिंग सेशन में शामिल होने के लिए दबाव डाला जा रहा है, जहां मैनेजर उन्हें सैमसंग एम्प्लाई वेलफ़ेयर फ़ेडरेशन (एसईडब्ल्यूएफ़) में शामिल होने के लिए दबाव डालते हैं और धमकाते हैं। एसईडब्ल्यूएफ़ मैनेजमेंट की खड़ी की गई जेबी यूनियन है। इसके अलावा कंपनी जुझारू वर्करों को बहुत कठिन कामों पर ट्रांसफ़र कर रही है।
अप्रैल में प्रबंधन ने घोषणा की कि एसईडब्ल्यूएफ़ को अपना 'प्रतिनिधि' स्वीकार करने वाले लगभग 500 कर्मचारियों को वेतन वृद्धि मिलेगी क्योंकि इस जेबी संगठन के साथ 'बातचीत' के बाद एक समझौता हुआ था लेकिन एसआईडब्ल्यूयू से जुड़े 1300 सदस्यों को वेतन वृद्धि नहीं दी जाएगी जिन्होंने हड़तालों और आंदोलनों में भाग लिया था।
वर्करों के बीच विस्फोटक गुस्से का अंदाज़ा लगाते हुए और इस डर से कि पहले की दो हड़तालों को ख़त्म कराने की इसकी कार्रवाईयों के बाद रैंक एंड फ़ाइल में सीटू की विश्वसनीयता तेजी से घट रही है, सीटू के मुथुकुमार ने सैमसंग मैनेजमेंट को 14 दिनों की हड़ताल की नोटिस जारी कर दी और एसआईडब्ल्यूयू वर्करों के वेतन वृद्धि और एसआईडब्ल्यूयू के 25 निलंबित सदस्यों की बहाली की मांग रख दी। हालांकि यह भी धमकी खोखली साबित हुई क्योंकि 16 अप्रैल को समय सीमा तय की गई थी और इसके बाद भी सीटू ने कोई कार्रवाई नहीं की।
13 मई से क़रीब 900 वर्करों ने वेतन वृद्धि और अपने निलंबित 25 साथियों की बहाली को लेकर एक दिवसीय भूख हड़ताल समेत क्रमिक प्रदर्शन शुरू कर ये। इन्ही प्रदर्शनों के सिलसिले के तहत सीटू ने 14 मई को कांचीपुरम में सैमसंग वर्करों के एक मार्च का आह्वान किया था। हालांकि कांचीपुरम पुलिस ने इस डर से रैली की इजाज़त नहीं दी कि इस तरह का जमावड़ा इस औद्योगिक क्षेत्र के अन्य वर्करों के आकर्षण का केंद्र बन सकता है।
यही वो पृष्ठभूमि है जिसके दौरान 19 मई को सीटू ने सैमसंग के साथ एक 'वेतन समझौता' किया।
जब पत्रकारों ने उन 25 निलंबित वर्करों के बारे में सवाल किया तो इसका जवाब वहां मौजूद सीटू के अधिकारियों की बजाय डीएमके के श्रम मंत्री ने दिया। उन्होंने कहा कि यह समझौता सिर्फ़ वेतन बढ़ोत्तरी को लेकर हुआ है और निलंबित 25 वर्करों पर फैसला आगे किया जाएगा।
स्टालिनवादी सीटू को डीएमके सरकार की सहयोगी के रूप में काम करना चाहिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। सीटू की राजनीतिक पार्टी, सीपीएम, डीएमके के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है, जो राज्य और राष्ट्रीय दोनों चुनावों में तमिलनाडु में डीएमके के नेतृत्व वाले चुनावी गठबंधनों में हिस्सा लेती है और राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी से अपने चुनाव अभियानों का समर्थन करने के लिए भारी मात्रा में धन प्राप्त करती है। इससे भी अधिक मौलिक रूप से, स्टालिनवादी सीपीएम और सीटू इस बात पर सहमत हैं कि तमिलनाडु राज्य की 'व्यापार-मित्र' प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए 'औद्योगिक शांति' बनाए रखना ज़रूरी है।
सैमसंग वर्करों को इस कड़वे अनुभवों से सीख लेनी चाहिए। उन्हें निर्णयात्मक रूप से सीटू से अलग हो जाना चाहिए और स्वतंत्र रैंक एंड फ़ाइल कमेटियां बनाकर अपने संघर्ष को अपने हाथ में ले लेना चाहिए और सीटू से एसआईडब्ल्यूयू का नियंत्रण छीन लेना चाहिए। इस तरह की एक कमेटी परमानेंट, कांट्रैक्ट और टेंपरेरी वर्करों को एकजुट करेगी और उन्हें भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सैमसंग वर्करों के बीच संपर्क को स्थापित करना चाहिए। सैमसंग वर्करों को श्रीपेरंबदूर-कांचीपुरम औद्योगिक क्षेत्र और तमिलनाडु और भारत भर में अपने भाई-बहन वर्करों से संपर्क करना चाहिए, ताकि वे अपने मालिकों के ख़िलाफ़ एकता बना सकें और खर्च कटौती, निजीकरण, ठेका मजदूरी, सांप्रदायिक अधिनायकवाद और युद्धोन्माद के ख़िलाफ़ मज़दूर वर्ग का जवाबी हमला कर सकें।
केवल वर्ग संघर्ष और समाजवादी अंतरराष्ट्रीयता में निहित ऐसा आंदोलन ही सैमसंग जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के क्रूर शोषण का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सकता है।