यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के India and South Asia on knife’s edge after Indo-Pakistani clash मूल लेख का है, जो आठ मई 2025 को प्रकाशित हुआ थाI
भारत और पाकिस्तान दक्षिण एशिया के दो प्रतिद्वंद्वी परमाणु हथियार संपन्न देश हैं। कुछ दशकों बाद सबसे बड़ी सैन्य झड़प, जिसमें दर्जनों नागरिक मारे गए हैं, के बाद दोनों देश एक खुली जंग के कगार पर पहुंच गए हैं।
बीते बुधवार को पाकिस्तान ने घोषणा की कि छह-सात मई की दरम्यानी रात यानी मंगलवार की रात को भारत की ओर से किए गए हवाई हमले का जवाब देने के लिए पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने सेना को 'अपने चुने हुए समय, जगह और तरीक़े' के हिसाब से जवाब देने की खुली छूट दे दी है।
इसके तुरंत बाद, नई दिल्ली ने कहा कि पाकिस्तान की सेना की ओर से कोई भी कार्रवाई का भारत उसी तरीक़े से जवाब देगा, जोकि इस बात का संकेत था कि मुंहतोड़ जवाब देने वाले हमलों से हालात और बिगड़ेंगे, जिससे स्थिति हाथ से निकल सकती है और एक खुली जंग में तब्दील हो सकती है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देशों की सरकारों को जो संदेश दिया है, उसे संक्षिप्त रूप में रखते हुए एक भारतीय अधिकारी ने कहा कि 'अगर पाकिस्तान तनाव को और बढ़ाने का फ़ैसला करता है तो भारत इसका दृढ़ता से जवाब देने के लिए तैयार है।'
दोनों ओर के नेताओं और सैन्य नेतृत्व की ओर से बढ़ती धमकियों के बीच पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने परमाणु संघर्ष छिड़ने की आशंका जताई है। आसिफ़ ने जियो टीवी से कहा, 'अगर भारत क्षेत्र में खुली जंग थोपता है और ऐसा कोई ख़तरा पैदा होता जिसमें गतिरोध आता है तो किसी भी समय परमाणु युद्ध की शुरुआत हो सकती है।'
बुधवार को तड़के, भारत ने पाकिस्तान के अंदर कई ठिकानों पर हमले किए जबकि दिल्ली ने दावा किया कि भारत के कब्ज़े वाले कश्मीर में पहलगाम के पास हुए 22 अप्रैल के आतंकी हमले, जिसमें 26 पर्यटक मारे गए थे, के ख़िलाफ़ बदले की कार्रवाई की है। पहलगाम हमले के कुछ घंटे बाद ही, भारत की हिंदू बर्चस्ववादी भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार ने पाकिस्तान पर इस हमले की साज़िश रचने का आरोप लगाया, हालांकि अभी तक अपने दावे के पक्ष में उसने कोई सबूत पेश नहीं किया है।
विरोधाभासी दावे
भारत और पाकिस्तान अब 6-7 मई की रात को हुई लड़ाई के बारे में परस्पर विरोधी दावे कर रहे हैं, जिसमें दोनों पक्ष अपनी सैन्य शक्ति का बखान कर रहे हैं।
इस समय निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि भारत ने बड़े पैमाने पर हमला किया, जिसमें इस्लामाबाद के अनुसार 75 से अधिक युद्धक विमानों ने भाग लिया, और कम से कम छह और संभवतः नौ अलग-अलग शहरों और गांवों में ठिकानों को निशाना बनाया, जिनमें से तीन पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में और बाकी आज़ाद या पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हैं।
भारतीय मीडिया में आई रिपोर्टों के मुताबिक़, भारत के इस खूनी हमले के तुरंत बाद ही नियंत्रण रेखा के पार तोपखाने और मोर्टार से बमबारी शुरू हो गई, जिसके परिणामस्वरूप जम्मू कश्मीर में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई। यह नियंत्रण रेखा भारत के कब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर को पाकिस्तान के कब्ज़े वाले आज़ाद कश्मीर से अलग करती है।
पाकिस्तान ने भारत पर आरोप लगाए कि उसने 'आतंकवादी शिविरों' पर हमला करने के बहाने अपने हवाई जहाज़ों, ड्रोन और मिसाइलों से नागरिक इलाक़ों को निशाना बनाया। उसका कहना है कि बुधवार तड़के भारत के हमलों में सात वर्षीय एक बच्चे सहित 31 नागरिक मारे गए और 57 अन्य घायल हो गए।
इस्लामाबाद ने तीन भारतीय फ़ाइटर जेट और दो ड्रोन मार गिराने का भी दावा किया है।
नई दिल्ली अब तक अपने सैन्य नुकसान के पाकिस्तानी दावों पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन हिंदू और न्यूयॉर्क टाइम्स सहित विभिन्न अख़बरों ने फ़ाइटर जेट के गिर जाने के सबूतों की पुष्टि की है और अज्ञात भारतीय अधिकारियों के हवाले से नुकसान की बात स्वीकार की है, जिसमें एक बहुत एडवांस्ड फ्रांसीसी निर्मित रफ़ाल लड़ाकू जेट भी शामिल है।
भारत यह दावा कर रहा है कि पाकिस्तान पर उसका हमला, जिसे उसने 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया, साल 2016 और 2019 में किए गए सीमापार हमलों की तुलना में कहीं अधिक बड़ा, अधिक शक्तिशाली और सैन्य रूप से अधिक परिष्कृत था। पहले किए गए इन हमलों ने उस समय भी उपमहाद्वीप को ख़तरनाक रूप से पूर्ण जंग की कगार पर ला खड़ा किया था।
दशकों में पहली बार ऐसा हुआ है कि भारत ने, पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर, जिसपर नई दिल्ली इस्लामाबाद के साथ प्रतिक्रियावादी विवाद के तौर पर अपना हक़ जताती है, तक ही अपने हमलों को सीमित रखने के बजाय पाकिस्तान के पंजाब जैसे प्रमुख शहरों के क़रीब के ठिकानों पर हमला किया। और उसने अपने लड़ाकू विमानों और ड्रोन को पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र में प्रवेश किए बिना ऐसा किया।
इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हुए, पूर्व राजदूत और उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पंकज सरन ने दावा किया कि पाकिस्तान पर अपने ताज़ा हमले के साथ, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी के ख़िलाफ़ भारत के रणनीतिक संघर्ष के संबंध में 'खेल के नियमों को बदल' दिया है।
सरन ने लिखाः
भारत अब, पाकिस्तान की पूर्ण युद्ध की धमकी, अनियंत्रित संघर्ष और बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई, या इससे भी महत्वपूर्ण परमाणु ख़तरे के शोर से प्रभावित नहीं है। 'ऑपरेशन सिंदूर' और उससे पहले, 2016 और 2019 में जवाबी कार्रवाइयों ने दिखाया है कि भारत के पास सैन्य और अन्य विकल्प उपलब्ध हैं।
भारत ने दावा किया है कि उसके हमले 'बहुत केंद्रित, नपे तुले और अपनी प्रकृति में भड़काने वाले नहीं' थे, लेकिन स्पष्ट रूप से वह एक बड़ी जंग के लिए तैयार है।
1971 के भारत पाकिस्तान जंग के बाद पहली बार, बुधवार को भारत ने पूरे देश में सिविल डिफ़ेंस की मॉकड्रिल का अभ्यास किया। भारत के 780 ज़िलों में से क़रीब 250 उन ज़िलों में ये मॉकड्रिल की गई, जिनपर हमले की आशंका थी या वे सीमा के पास थे या वहां सैन्य बेस, परमाणु संयंत्र या अन्य संवेदनशील ढांचा मौजूद था। इस मॉकड्रिल के तौर पर किसी भी हवाई हमले से बचने के अभ्यास के लिए दिल्ली समेत बड़े भारतीय शहरों में 15 मिनट तक बिजली काटी गई।
भारत सरकार में किसी ने भी यह सुझाव नहीं दिया है कि वह इस्लामाबाद के साथ बातचीत करने के लिए तैयार है, पाकिस्तान के ख़िलाफ़ उठाए गए अन्य “बदले की मंशा” वाले क़दमों को वापस लेने की तो बात ही छोड़ दी जाए। इनमें पाकिस्तान के साथ सभी प्रकार के व्यापार को निलंबित करना और प्रमुख बॉर्डर क्रॉसिंग को बंद करना और सबसे उकसावे वाली कार्रवाई के रूप से सन् 1960 की सिंधु जल संधि में भारत की भागीदारी को निलंबित करना शामिल है।
65 साल पहले जबसे संधि लागू हुई उसके बाद से भारत ने पाकिस्तान के साथ दो घोषित युद्ध, कई अघोषित युद्ध और बॉर्डर पर अनगिनत झड़पों में हिस्सा लिया है। हालाँकि, भारत से होकर बहने वाली सिंधु नदी के जल संसाधनों को बांटने वाली इस संधि को इससे पहले कभी भी निलंबित नहीं किया गया। यह पानी पाकिस्तान की कृषि और बिजली आपूर्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले सप्ताहांत, भारत ने सिंधु की दो सहायक नदियों पर बांधों के गेट बंद कर पानी नियंत्रित करना शुरू कर दिया, जिसका घोषित उद्देश्य पाकिस्तान तक पहुँचने वाले 90 प्रतिशत पानी को रोक देना है। इस समय पाकिस्तान में धान रोपने का समय है और इससे ख़रीफ़ की फसल को भारी नुकसान होगा।
पाकिस्तान की जल आपूर्ति बंद करने की बीजेपी मंत्रियों की धमकियों को और आगे ले जाते हुए मोदी ने मंगलवार को, भारत द्वारा पाकिस्तान पर सीमा पार हमला करने से कुछ ही घंटे पहले घोषणा की कि अबसे भारत का पानी केवल “राष्ट्रीय हित” में इस्तेमाल किया जाएगा और “अब यह पानी बाहर नहीं बहेगा।”
भारत-पाकिस्तान संघर्ष प्रतिद्वंदी पूंजीवादी शक्तियों के बीच एक प्रतिक्रियावादी झगड़ा है। इसकी जड़ें 1947 में उपमहाद्वीप के सांप्रदायिक विभाजन में निहित हैं, जिसमें एक स्पष्ट रूप से मुस्लिम पाकिस्तान और एक हिंदू भारत का जन्म हुआ था। असल में यह बंटवारा उस प्रक्रिया का हिस्सा था जिसके तहत स्टालिनवाद ने साम्राज्यवाद और औपनिवेशिक देशों में राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के साथ मिलकर सामाजिक क्रांति को दबाने और दूसरे विश्व युद्ध के बाद पूंजीवाद को फिर से स्थिर करने की साज़िश रची थी।
पिछले आठ दशकों में, प्रतिद्वंद्वी बुर्जुआ शासनों ने दक्षिण एशिया में सत्ता और लाभ के लिए अपने हिंसक संघर्ष को आगे बढ़ाने में अनगिनत लोगों की जान और संसाधन बरबाद किए हैं। साथ ही, उन्होंने संघर्ष का इस्तेमाल सांप्रदायिक प्रतिक्रियावाद को भड़काने और व्यापक ग़रीबी और तीख़ी सामाजिक असमानता से पैदा हुए सामाजिक तनाव को बाहर की ओर मोड़ने के लिए किया है।
वॉशिंगटन की भड़काऊ भूमिका
पिछले दो दशकों के दौरान, भारत-पाकिस्तान संघर्ष अमेरिकी साम्राज्यवाद और चीन के बीच रणनीतिक संघर्ष से और भी अधिक उलझ गया है, जिससे इसमें एक नया विस्फोटक आयाम जुड़ गया है और इसमें यह संभावना भी शामिल है कि यह वैश्विक संघर्ष को जन्म दे सकता है। जॉर्ज डब्ल्यू बुश से लेकर आज ट्रंप तक, डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों राष्ट्रपतियों के शासन में, वॉशिंगटन ने अपने वैश्विक दबदबे का लाभ उठाने और चीन दबाने के लिए इसे बनाए रखने के लिए अमेरिकी साम्राज्यवाद के अभियान के तहत भारत को उकसाया है।
नतीजतन, अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को नाटकीय रूप से कम कर दिया है, जो कभी उसका प्रमुख दक्षिण एशियाई सहयोगी था, जिससे पाकिस्तान को चीन के साथ अपनी “सदाबहार” साझेदारी को बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा, और इससे वॉशिंगटन और नई दिल्ली दोनों के साथ तनाव और बढ़ गया।
हाल के दिनों में, और ख़ासकर मंगलवार रात को भारत और पाकिस्तान के बीच हुई झड़प के बाद से, सभी महाशक्तियों और ईरान, बांग्लादेश और खाड़ी देशों सहित व्यापक क्षेत्र की सरकारों की ओर से तत्काल तनाव कम करने के लिए चिंताजनक अपीलें की गईं।
हमेशा की तरह ये अपीलें पाखंड से भरी हुई हैं, क्योंकि हर सरकार अपने स्वार्थ को ही आगे बढ़ाती है और अपनी कार्रवाई की आज़ादी को बनाए रखना चाहती है।
इस प्रकार किसी भी साम्राज्यवादी शक्ति ने मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तान पर किए गए स्पष्ट रूप से सीमा पार अवैध हमले या सिंधु जल संधि को भड़काऊ तरीक़े से निलंबित करने की निंदा नहीं की या पहलगाम आतंकवादी हमले की अंतरराष्ट्रीय जांच के लिए इस्लामाबाद के प्रस्ताव का तीख़ा विरोध करने के लिए भारत की आलोचना नहीं की है।
2016 और 2019 में, पहले ओबामा और फिर ट्रंप के शासनकाल में, अमेरिका ने यह दावा करते हुए पाकिस्तान पर सीमा पार नई दिल्ली के हमलों के लिए अपने समर्थन की जोरदार घोषणा की, कि उसके सहयोगी को “आत्मरक्षा” और “आतंकवाद से लड़ने” के नाम पर अंतरराष्ट्रीय कानून को रद्द करने का वही “अधिकार” है जो उसे और उसके इसराइली हमलावर कुत्ते को है।
आज तक, अमेरिकी अधिकारियों ने खुद को “तनाव कम करने” के लिए बुदबुदाहट वाली अपीलों तक ही सीमित रखा, और अधिकांश ज़िम्मेदारी पाकिस्तान पर डाल दी।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को कहा, 'यह बहुत भयानक है. मैं उन्हें रुकते हुए देखना चाहता हूँ। और उम्मीद है कि वे अब रुक जाएंगे।'
संघर्ष के बारे में नई दिल्ली के बयान को काफी हद तक दोहराते हुए, उन्होंने आगे कहा, 'उन्होंने जैसे को तैसा जवाब दे दिया है, इसलिए उम्मीद है कि वे अब रुक सकते हैं।' इससे पहले उन्होंने अस्पष्ट शब्दों में कहा था कि 'मदद करूंगा, अगर मैं कुछ कर सका तो।'
फासीवादी राष्ट्रपति का खुद को शांतिप्रिय व्यक्ति के रूप में पेश करने की कोशिश, दक्षिण एशियाई रंगमंच में हर दूसरे रंगमंच की तरह एक दिखावा है।
वॉशिंगटन ने नई दिल्ली के साथ अपनी चीन विरोधी “वैश्विक रणनीतिक साझेदारी” को सुरक्षित करने के लिए जो क़दम उठाए हैं, उनसे भारत को क्षेत्रीय दादागीरी की हैसियत हासिल करने की दिशा में बहुत प्रोत्साहन मिला है।
भारत के 2016 और 2019 के हमलों को हरी झंडी देने के अलावा, इन अमेरिकी क़दमों में शामिल हैः
- भारत को उच्च तकनीक वाले अमेरिकी हथियारों से लैस करना;
- सिविल न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी में व्यापार तक उसकी पहुँच सुनिश्चित करना, ताकि वह अपने स्वदेशी परमाणु कार्यक्रम को हथियारों के विकास पर केंद्रित कर सके;
- ब्लू वॉटर नेवी के विकास में उसका सहयोग करना;
- भारत को अपने सबसे महत्वपूर्ण एशिया-प्रशांत सहयोगियों, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और चतुर्भुज सैन्य-सुरक्षा आदान-प्रदान के एक व्यापक नेटवर्क में शामिल करना;
- और विवादित कश्मीर में मोदी सरकार के 2019 के संवैधानिक तख्तापलट का समर्थन करना, जिसने भारत के एकमात्र मुस्लिम बहुल क्षेत्र, जम्मू-कश्मीर को उसके विशेष स्वायत्त दर्जे से वंचित कर दिया और इसे केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया।
भारत और पाकिस्तान के मज़दूरों को अपनी-अपनी सरकारों और शासक वर्गों की प्रतिक्रियावादी युद्धोन्माद और दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र को अमेरिका के नेतृत्व वाले साम्राज्यवादी संघर्ष में केंद्रीय क्षेत्र में बदलने का विरोध करना चाहिए।
भारत-पाकिस्तान युद्ध दक्षिण एशिया के लोगों और वास्तव में पूरे ग्रह के लिए एक आपदा होगी, जैसा कि दोनों पक्षों के शासक वर्ग के प्रवक्ताओं द्वारा परमाणु संघर्ष की संभावना के बारे में जिस लापरवाही से बात की जाती है, उससे यह और स्पष्ट होता है।
इसके अलावा, बाहरी आक्रमण, वर्ग युद्ध के तेज़ होने के साथ साथ घटित होता है। दक्षिण एशिया में अंधराष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देकर, जिसके साथ यह अटूट रूप से जुड़ा हुआ है, भारत और पाकिस्तान की सरकारें वैश्विक पूंजी को आकर्षित करने के लिए मज़दूरों के शोषण को बढ़ाने के अपने अभियान के ख़िलाफ़ सभी विरोधियों को डराने और चुप कराने की कोशिश कर रही हैं।
दक्षिण एशिया में, दुनिया भर की तरह, एक महत्वपूर्ण सवाल वैश्विक मज़दूर वर्ग के नेतृत्व वाले युद्ध-विरोधी आंदोलनों का निर्माण करना है जो युद्ध के विरोध को सामाजिक समानता और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की लड़ाई से जोड़ता है - यानी समाजवाद के लिए एक राजनीतिक प्रत्याक्रमण की लड़ाई।