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श्रीलंकाः ट्रेड यूनियनों ने सरकार की बजट कटौती का समर्थन किया

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेजी के Sri Lanka: Trade unions back government austerity budget जो 26 फ़रवरी 2025 को प्रकाशित हुआ थाI

जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी)/ नेशनल पीपुल्स पॉवर (एनपीपी) के नेता और श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने 17 फ़रवरी को बजट पेश किया था, जिसमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ के सुझाए निर्मम ख़र्च कटौती उपायों को थोपा गया है।

राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके संसद में अपना बजट भाषण देते हुए (फ़ोटो: X/अनुरा कुमारा दिसानायके) [Photo by X/Anura Kumara Dissanayake]

इसमें सरकारी मालिकाने वाली कंपनियों (एसओई) के पुनर्गठन जिससे पांच लाख कर्मचारियों की नौकरी चली जाएगी, वेतन कटौती और काम का बोझ बढ़ाने जैसे ऐसे तरीक़े अपनाए गए हैं जिनके दूरगामी परिणाम होंगे। एसओई को बाज़ार में प्रतियोगी बनाने, मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनी बनाने और प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप कंपनियां बनाने के लिए एक होल्डिंग कंपनी स्थापित की जाएगी।

आईएमएफ़ द्वारा बताया गया एक मुख्य खर्च कटौती कार्यक्रम है, बजट घाटे को कम करने के लिए वेतन बढ़ोत्तरी को दबाना। दिसानायके ने सबसे निचले तबके के सरकारी कर्मचारियों के लिए वेतन में बहुत मामूली 8,250 रुपये (क़रीब 28 डॉलर) की वृद्धि की घोषणा की है और अन्य ऊंचे पदों पर काम करने वाले कर्मचारियों के लिए भी उसी अनुपात में थोड़ी वृद्धि की है। यह बढ़ोत्तरी भी अप्रैल से शुरू होने वाले वित्त वर्ष से लेकर अगले तीन सालों में किश्तों में होगी।

निजी क्षेत्र में इस साल 6000 रुपये की वेतन बढ़ोत्तरी हुई, जिससे न्यूनतम मासिक वेतन 27,000 रुपये हो गया है। यह बढ़ोत्तरी भी दरअसल, असली वेतन में कमी ही है।

बजट से पहले ही टैक्स आमदनी बढ़ाने के लिए दिसम्बर के अंत में चावल समेत 64 वस्तुओं पर लेवी लगा दिया गया। वाहनों के आयात पर 300-400 प्रतिशत तक कस्टम ड्यूटी बढ़ा दी गई, साथ ही अल्कोहल वाले विभिन्न पेय पदार्थों और तंबाकू पर टैक्स बढ़ा दिया गया।

इसके अलावा, सरकार निजी कंपनियों के साथ मिलकर विशेष औद्योगिक क्षेत्र (एसआईज़ेड) बनाएगी, यानी सत्ते श्रमिकों का प्लेटफ़ॉर्म। इनमें से पांच के पूरा होने की समय सीमा तो इसी साल है और तीन अन्य के लिए भी फ़ंड का आवंटन हो चुका है।

जैसी उम्मीद थी, सीलोन टीचर्स सर्विस यूनियन (सीटीएसयू) जैसी जेवीपी नियंत्रित ट्रे़ड यूनियनों के नेताओं ने इस मामूली वेतन वृद्धि को भी वर्करों की “जीत“ घोषित किया है। ये नेता सांसद हैं और जेवीपी/एनपीपी सरकार में मंत्री और उप मंत्री हैं।

विपक्षी पार्टियों से संबद्ध ट्रे़ड यूनियनों ने आरोप लगाया है कि जेवीपी/एनपीपी सरकार ने “वेतन में अच्छी ख़ासी बढ़ोत्तरी“ के अपने चुनावी वायदे को तोड़ दिया है। ये सभी सरकार के निजीकरण क़दम के बारे में चुप्पी साधे हुए हैं जिससे लाखों नौकरियां जाएंगी और काम के हालात और ख़राब होंगे।

वे दिसानायके की उस घोषणा पर भी चुप हैं जिसमें कहा गया है कि सरकार साल 2028 से सालाना 6 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज की अदायगी शुरू करने के लिए ये कटौती वाले उपाय कर रही है।

विपक्षी समागी जन बलावेगाया (एसजेबी) द्वारा नियंत्रित सभी यूनियनों के फ़्रंट- समागी यूनाइटेड ट्रेड यूनियन अलायंस- के राष्ट्रीय संगठन प्रियंता पतबेरिया ने कहा कि एनपीपी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाहें बढ़ाने और वेतन असमानता को हल करने के अपने वायदों को तोड़ा है। सरकार पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने एलान किया कि यूनियनें “पेशवराना कार्यवाहियां“ यानी हड़ताल प्रदर्शन, करने से नहीं हिचकेंगी। उन्होंने ये नहीं बताया कि क्या कोई कथित “पेशेवराना कार्यवाही“ की योजना बनी भी है।

प्रियंता फर्नांडो-सीलोन शिक्षक संघ की अध्यक्ष (फ़ोटो: फ़ेसबुक/प्रियंता फर्नांडो) [Photo by Facebook/Priyantha Fernando]

सीलोन टीचर्स यूनियन (सीटीयू) सरकार का समर्थन करते हुए भी खुद को स्वतंत्र रूप में दिखा रही है। सीटीयू अध्यक्ष प्रियंता फ़र्नांडो ने वेतन बढ़ोत्तरी की अपनी मांगों को “नज़रअंदाज़“ करने के लिए सरकार की आलोचना की। उन्होंने कहा, “बजट ने सरकारी कर्मचारियों के बेहतर भविष्य के सपने को चूर चूर कर दिया है।“

हालांकि सीटीयू ही अध्यापकों के कम वेतन के लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार है। साल 2021 में सीटीयू ने सीटूएसयू की अगुवाई वाले टीचर्स और प्रिंसिपलों की यूनियनों के फ़्रंट के साथ मिलकर ढाई लाख शिक्षकों की 100 दिनों तक चली हड़ताल को ख़त्म कराया था और मांग की गई वेतन वृद्धि के एक तिहाई बढ़ोत्तरी की सरकार की पेशकश को स्वीकार किया था।

फ़ेडरेशन ऑफ़ हेल्थ प्रोफ़ेशनल्स (एफ़एचपी) के नेता रवि कुमुदेश ने स्वास्थ्य मंत्री नलिंदा जयतिसा को पिछले हफ़्ते लिखा कि वेतन बढ़ोत्तरी के साथ ओवर टाइम की दरों में जो बदलाव किए गए हैं, उससे स्वास्थ्य कर्मियों की मासिक आमदनी और कम हो जाएगी। छुट्टी के दिन काम करने के बदले भुगतान की दर को भी कम कर दिया गया है।

कुमुदेश ने चेतावनी दी कि अगर मंत्री के साथ वार्ता विफल होती है तो एफ़एचपी “पेशेवराना कार्यवाही“ करने पर मजबूर हो जाएगी।

अन्य क्षेत्रों के सरकारी नौकरशाहियों ने भी इसी तरह के बयान जारी किए हैं और अपर्याप्त वेतन वृद्धि की बिना धमकी वाली हल्की फुल्की आलोचना की है। किसी ने भी सरकार के विनाशकारी निजीकरण की योजना की आलोचना नहीं की।

8 जुलाई, 2024 को लोक प्रशासन मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन करते सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी [Photo: WSWS]

साल 2023 के शुरुआत से जब देश में सामाजिक संकट गहरा गया था, वेतन, नौकरियों और अन्य मुद्दों पर सरकारी कर्मचारियों की हड़तालें और प्रदर्शन फूट पड़े। पिछले साल आठ-नौ जुलाई को क़रीब 10 लाख सरकारी कर्मचारियों, डेवलपमेंट अफ़सर, सर्वेक्षणकर्ता, ग्राम अधिकारी, सरकारी प्रशासनिक कार्यालयों के अधिकारी और कुछ स्वास्थ्य कर्मियों ने वेतन बढ़ाने के लिए हड़ताल की कार्यवाही की थी। इसमें सेवानिवृत्त कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया।

इसके कुछ सप्ताह बाद ही, 29 जुलाई को जेवीपी नेता केडी लाल कांता ने सार्वजनिक रूप से एलान किया था कि जेवीपी नियंत्रित ट्रेड यूनियनें और हड़तालें आयोजित नहीं करेंगी क्योंकि इससे सार्वजनिक अराजकता फैलेगी और पार्टी के राष्ट्रपति चुनाव अभियान पर असर पड़ेगा। यहां तक उन्होंने इन कार्यवाहियों को ”प्रतिक्रियावादी” तक क़रार दिया था।

तबसे, केवल जेवीपी यूनियनें ही नहीं बल्कि अन्य यूनियनों ने भी मज़दूर वर्ग की सामाजिक स्थिति पर चल रहे हमले के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए कोई औद्योगिक कार्यवाही का आह्वान करना बंद कर दिया है। इसका कारण स्वाभाविक है। सभी विपक्षी पार्टियां और ट्रेड यूनियनें आईएमएफ़ के ख़तरनाक खर्च कटौती एजेंडे का समर्थन करती हैं और मज़दूरों की ओर से किसी भी विरोध को नियंत्रित करने और दबाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

निजी क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों के नेता भी इसी तरह के हैं। मज़दूरों की बहुसंख्या, जोकि लगभग 65 लाख है, निजी क्षेत्र में काम करती है। अधिकांश यूनियन से संबद्ध नहीं हैं। एम्प्लायर्स फ़ेडरेशन ऑफ़ सीलोन ने इस साल न्यूनतम वेतन में मामूली 6,000 रुपये और अगले 3,000 रुपये की बढ़ोत्तरी की घोषणा की है।

FTZ यूनियन नेता एंटोन मार्कस (फ़ोटो: फ़ेसबुक) [Photo by Facebook]

फ़्री ट्रेड ज़ोन जनरल सर्विसेज़ एम्प्लाईज़ यूनियन के जनरल सेक्रेटरी एंटोन मार्कस ने एलान किया कि मज़दूरों ने ”ठीक ठाक वेतन वृद्धि” की उम्मीद की थी और उन्होंने चेतावनी दी कि इस वृद्धि को स्वीकार करना मज़दूरों के लिए ”चुनौती” के समान थी। मार्कस जिस चीज़ को चुनौतीपूर्ण मानते हैं, असल में वह है बहुत मामूली वेतन पा रहे फ़्री ट्रेड ज़ोन के दसियों लाख वर्करों के बीच अशांति के फूट पड़ने की आशंका।

बागानों में सीलोन वर्कर्स कांग्रेस (सीडब्ल्यूसी) और अन्य यूनियनों ने बागान मज़दूरों के लिए दिसानायके की ओर से घोषित दिहाड़ी में 1700 रुपये की वृद्धि की सराहना की है और उनसे अपील की है कि वे कंपनियों पर अधिक वेतन देने के लिए दबाव डालें। वास्तविकता में यह आंकड़ा कोई नया नहीं है। पिछले साल कंपनियों ने पिछली सरकार द्वारा निर्देशित 1700 रुपये दिहाड़ी की मांग को ख़ारिज कर दिया था। इसके अलावा काम के बोझ को बढ़ा दिया था।

अतीत में सभी बागान यूनियन के नेता सरकार में मंत्री रह चुके हैं और एक औद्योगिक पुलिस के रूप में काम करते हुए कंपनियों के साथ साठगांठ की। हड़तालें तोड़ने और विश्वासघात करने का उनका लंबा इतिहास रहा है।

वर्करों को याद रखना चाहिए कि किस तरह सभी ट्रेड यूनियनों ने अप्रैल-जुलाई के जनउभार के दौरान क्या किया था- चाहे वे जेवीपी, एसजेबी, फ़र्ज़ी वामपंथी फ़्रंटलाइन सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ी हों या खुद को स्वतंत्र कहलाने वाली ट्रेड यूनियनें हों।

वर्करों की ओर से बढ़ते दबाव के बीच, यूनियनों को दो बार आम हड़ताल बुलाने को मजबूर होना पड़ा, वो भी सीमित एक दिवसीय- 28 अप्रैल और छह मई को। जातीय विभाजनों से परे होकर दसियों लाख वर्करों ने इन हड़तालों में हिस्सेदारी की। हालांकि यूनियन तंत्र ने वर्करों के गुस्से को संसद की अंधी गली की ओर मोड़ दिया और जेवीपी/एनपीपी और एसजेबी की ओर से अंतरिम पूंजीवादी सरकार के गठन की मांग से इसे जोड़ दिया था।

मज़दूर वर्ग की स्वतंत्र गतिविधि में टांग अड़ाते हुए, उन्होंने बदनाम श्रीलंका पोदुजना पेरामुना के लिए एक अमेरिकी परस्त, आईएमएफ़ परस्त रानिल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति के रूप में स्थापित करने का रास्ता साफ़ किया, जिसने खर्च कटौती के कड़े नियमों वाले तीन अरब डॉलर के आईएमएफ़ कर्ज़ पर हस्ताक्षर किया था।

वर्करों को ज़रूरी सबक लेने चाहिए। वे यूनियन नौकरशाहियों पर भरोसा नहीं कर सकते, जो और कुछ नहीं बल्कि पूंजीवादी जेवीपी/एनपीपी सरकार और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी के लिए औद्योगिक पुलिस का काम करते हैं।

  • निजी और सरकारी क्षेत्रों के सभी वर्करों को, वास्तविक वेतन में आई कमी की भरपाई के लिए वेतन वृद्धि की ज़रूरत है। इसे जीवन-यापन की लागत के साथ समायोजित किया जाना चाहिए! पेंशनभोगियों को भी इसी तरह की वृद्धि मिलनी चाहिए!
  • निजीकरण बंद हो या बाज़ार के हिसाब से एसईओ का पुनर्गठन नहीं होना चाहिए, जिससे नौकरियां भी जाएंगी और वेतन भी कम होगा! इसकी बजाय सभी एसओई को मज़दूर वर्ग के लोकतांत्रिक नियंत्रण में लाने के लिए कर्मचारियों को संघर्ष करना चाहिए!
  • सभी विदेशी कर्ज़ों को ज़ब्त करो! इसकी जगह कर्ज़ की अदायगी का इस्तेमाल ग़रीबी में डूबे लाखों लोगों की बेहतरी वाले सामाजिक कार्यक्रमों और सरकारी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रसार पर खर्च किया जाना चाहिए।

पूंजीवादी सिस्टम या राष्ट्र के अंदर मौजूदा सामाजिक और आर्थिक संकट का समाधान नहीं है। हम वर्करों से अपील करते हैं कि वे अंतरराष्ट्रीयतावाद पर आधारित सामाजवादी नीतियों के लिए संघर्ष करें।

बागानों, बस्तियों और कार्यस्थलों पर सभी पूंजीवादी पार्टियों और ट्रेड यूनियनों से स्वतंत्र लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई एक्शन कमेटियों के गठन के द्वारा वर्करों को अपने मामले खुद अपने हाथ में लेने होंगे। इन एक्शन कमेटियों में यूनियन नौकरशाहों या पूंजीवादी नेताओं की कोई जगह नहीं होगी।

आईएमएफ़ के उकसावे पर होने वाले इन हमलों के ख़िलाफ़ एक संयुक्त अंतराष्ट्रीय कार्यवाही की ज़रूरत है। केन्या और जिम्बाब्वे जैसे कई देशों में आईएमएफ़ के निर्मम खर्च कटौती एजेंडे के ख़िलाफ़ वर्कर लगातार संघर्ष कर रहे हैं। इन संघर्षों को दुनिया भर में चल रहे वर्करों के संघर्षों से जोड़ना होगा, यहां तक कि साम्राज्यवादी गढ़ों में भी।

श्रीलंका में सोशलिस्ट इक्वालिटी पार्टी (एसईपी) पूरे देश में जातीय विभाजनों और राष्ट्र की सीमाओं से परे वर्करों को एकजुट करने का अभियान चला रही है। श्रीलंका में स्थापित एक्शन कमेटियों को इंटरनेशनल वर्कर्स अलायंस ऑफ़ रैंक एंड फ़ाइल कमेटी (आईडब्ल्यूए-आरएफ़सी) से जुड़ने की ज़रूरत है और इसे अंतरराष्ट्रीय संघर्षों के लिए एक तालमेल केंद्र के रूप में विकसित करने की ज़रूरत है।

एसईपी, समाजवादी नीतियों के प्रति प्रतिबद्ध मज़दूरों और किसानों की सत्ता के लिए संघर्ष का नेतृत्व करने के लिए, एक्शन कमेटियों से निर्वाचित प्रतिनिधियों के आधार पर मज़दूरों और ग्रामीण जनता की एक लोकतांत्रिक और समाजवादी वर्कर्स कांग्रेस का आह्वान कर रही है।

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